Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 189
________________ १४० रिट्ठणेमिचरिउ [१६] पभणेवि भीमसेणु णिय-पणए मेल्लाविउ तिगत्तु तव-तणएं गउ णिय-णिलयहो भग्ग-मडत्फरु मोडिय-फण-कडप्पु ण विसहरु णं छण-छुद्दहीरु गह-मेल्लिउ णं करि केसरि-णह-णित्तेल्लिउ णं रयणायरु मंथेवि मुक्कउ कह-वि क-हम-विणिय-वाहिणि ढुक्कउ ४ ताम जुहिट्ठिलु णमिउ विरा. सामिउ णाई णवलु किरहाडे अहो परमेसर पर-उवयारा एत्तिय-कालु ण णाउ भडारा एवहिं तुम्हहुं विहिं हउ किंकर स-कलत्तउ स-पुत्त स-सहोयरु एम भणेविणु अगणिय-मप्पें दिण्णु सव्वु संखुत्तर-वप्पे घत्ता कण्ण-सुवण्ण-धण्ण-धणेहिं रहवर-तुरय-जोह-वेयंडेहिं । भीम-जुहिट्ठिल-मद्दि-सुय पुज्जिय सव्व सई भुव-दंडेहि ॥ इय रिट्टणेमिचरिए धवलासिय-संयंभुव-कए उणतीसमा सग्गो ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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