Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 156
________________ छवीसमो संधि दंतु दलिज्जइ छिज्जइ चंदणु कवण सुहच्छी परेण पराहवे उहु पत्थाउ पत्थ तउ वट्टई जाम ण करवाहु णिहम्मइ तो सुर-पहरण- लिहिय- सरीरें जं खंडत्रे तोसत्रिय - हुवासणु जं कज्जे पणामहो आइयउ गुणवंत कोडि- अलंकरिङ तो केसरि-सय- विक्कम- सारे तहि आरुहेत्रि अराइ- पुरंजउ जाम वइरि णिय-णयरु ण पावइ णाई गइंदु मइदें दुक्के लाइय थरहरंत सर रहवरे जे कुरु कुरुहे पराहवे लग्गा मंछुडु पत्थु त्रि सज्जिउ राएं ताव सुतारें दाविउ संदणु अहिमाण- गइंदारोहणहो ते सीसायरिय समावडिय 13.8b कडवंद उज्झइ गिरि महि सहइ विमद्दणु अपणु वइरि हिम्मइ आहवे जाम ण दुज्जस-कमलु विसदृइ ताम घणंजय -रण-पिडु रम्मइ करे किउ स-सरु सरासणु धीरें जं तल-तालुव - वम्म-विणासणु Jain Education International घत्ता तु १०७ [१३] रहरु जोत्तिउ तुरिउ सुतारें कुरुव- राय - कुढे लग्गु घर्णजउ गरुडे' रुद्धु ताम फणि नावइ णाई महाघणु कीलिउ सुक्के थिउ गंधव-राउ तहि अवसरे ते मई समरे असेस वि भग्गा अवरु परक्कमेण को आएं जाउ विहि-मि महंतु कडमद्दणु धत्ता पेवखतहो तो दुज्जोहण हो । गंधव-घणंजय अभिडिय ॥ For Private & Personal Use Only सद्दालउ मुट्ठिहे माइयउ । तं घणु सु-कलत्तहो अणुहरिउ ॥ ९ ४ ८. ४ www.jainelibrary.org

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