Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 179
________________ रिट्ठणेमिचरित मयरद्धय-वाणोवद्दविउ उहु आयहे कारणे णिविउ लइ एवहिं काई विहाणएण परिपुच्छिरण किं राणएण घत्ता. दोवइ सवेण सहुं थाविउप्परि मडयाजाणहो । कीया-भाउ-सउ सवडम्मुहु चलिउ मसाणहो ।। णिज्जती कंदिय दुमय-सुय गंधव्वहो धावहो काई भुअ अहो जय जयंत विजयंत धरे जयसेण जयावह रक्ख करे तो भीमु ण कुहिणिहिं माझ्यउ भंजेवि पयारु पधाइयउ अण्णेत्तहे जे-तहे वइरि ण-वि उष्पाइय णोक्खी भंगि क-वि मुक्कलिय-केसु उक्खाय-तरु पच्चक्खु णाई थिउ रयणियरु सवडम्मुहु दीसइ कीयएहिं जमु दंड-पाणि णं भीयएहिं छड्डिज्जइ मडयाजाणु तहिं ण णाय पण? पइट्ट कहिं पल्लटु विओयरु णिय-भवणु पडिवण्णु दिवायरु उग्गमणु धत्ता संक पइट्ठ मणे तहो मच्छहो अणिहय-मल्लहो । कइकइ सिक्खविय सयलिंधि णिवासहो धल्लहो । [२०] तहिं अवसरे दुमय-णरिंद-सुय पक्खालिय-अंगोवंग-भुय लक्खिज्जइ सयल-जणेण किह पट्टणे पइसंति भवित्ति जिह सिय-वलयालंकिय-करयलहो गय सरहसु पासे विहंदलहो पछण्ण पउत्तिहि वज्जरे वि उत्तरए समाणु खेड्ड करे वि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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