Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 172
________________ अट्ठावीसमो संधि १२३ घत्ता पट्टणु पइसारियः जं धबलु धरालंकरियउ । केण-वि कारणेण णं सग्ग-खंडु ओयरियउ ।। जो वइयरु पुन्वालोइयउ सो दउवारियहो णिवेइयउ तेण वि जाणाविउ राणाहो तहो मच्छहो मच्छ-पहाणाहो अच्छंति वारे के-वि कप्पडिय णं सग्गहो पंच-इंद पडिय उज्जाल-झुलुक्किय-खंडवहं तहिं एक्कु पुरोहिउ पंडवहं सूयारु अवरु विक्कम-चरिउ अवरेक्कु तेत्थु णट्टायरिउ अवरेक्कु चलत्थ-महासवइ धणपालु अवरु तुम्हहं हवइ अवरेक्कु णारि सुमणहरिय पच्चस्व लक्खि णं अवयरिय महएविहे राय-हंस-गइहे सइलिंधि हवइ सा कइकइहे धत्ता सहुं दुमय-सुयाए कोक्काविय ते वि पइट्ठा । जीव-दयार सहिय परमेट्ठि-पंच णं दिट्ठा ॥ सयल-विणिय-णिय-णिओय-णिमिय तेहि-मि एयारह मास णिय वारहमउ मासु समावडिउ ण कीयए कालदंड पडिङ तणु तावइ लावइ पेम्म-जरु आयल्लइ सल्लइ कुसुम-सरु विधति काम-उक्कोवणई दोवइ-उज्जंगल-लोयणइं थणयल सु-मगोहर दिति दिहि पज्जालइ अंगु अणंग-सिहि झिज्जइ कुमारु सुसियाणणउ ण करिणि-विरहे वण-कारणउ जउ जउ सीमंतिणि संचरइ तउ तउ चडुयार-सय करई एक्कहिं दिये गयणाणदणिए णिमच्छिउ दुमयहो गंदणिए ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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