Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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जाता है । इस प्रसंग में पाण्डवों-विशेषकर के युधिष्ठिर और भीम की सूझबूझ और पराक्रम का चित्रण कविने बहुत मनोयोग से किया है । पाण्डवों के लाक्षागृह में जल जाने के मिथ्या समाचार से गान्धारी और धृतराष्ट्र मन ही मन प्रसन्न होते हैं । भीष्म, विदुर, कृपाचार्य, द्रोण शोकमग्न हो जाते हैं । पाण्डवों को अपूर्व रूप-सौन्दर्य से युक्त चित्रित किया है । उनके छदमवेश को भी देखकर कुमारी ललनाएँ उन के रूप पर मोहित हो जाती हैं। विरहज्वर से पीड़ित हो जाती हैं । यथा-त्रिशंग नगर के राजा की पुत्रीयों का मोहत होना-१८.७
इस यात्रा में भीम हिडिम्ब, वक, गज अङ्गदवर्धन का वध करता हुआ अपने अपने पौरुष का प्रदर्शन करता है। कुंती भीम के स्वभाव से खीझकर कहती है--
जहिं तुहु जाहि तहिं जि कडमद्दणु २०-११ 'जहा तू जाता है वहीं झगड़ा होता है ।'
ब्राह्मणवेश धारण किए हुए पाण्डव माकन्दी नगरी पहुँचते हैं जहाँ द्रौपदी का स्वयंवर हो रहा था। द्रौपदी के स्वयंवरमण्डप का वर्णन आकर्षक है । पाण्डव एक कुम्हार के घर में आश्रय लेते हैं (संधि २१) । अर्जुन द्रौपदी को राधावेध करके, प्राप्त करता है। अन्य निराश हुए राजाओं की कटूक्तियाँ और गर्वोक्तियाँ बहुत ही व्यंजक हैं-दुर्योधन कहता है कि क्षत्रिय की कन्या क्षत्रिय को मिलनी चाहिए, श्रोत्रियों को स्वयंवर शोभा नहीं देता
खत्तिय-सुय भुज्जइ खत्तियहो-२१.९
ण सयंवरु सोहइ सोत्तियहं -२१.१० दुर्योधन आक्रमण करता है किन्तु भीम और अर्जुन से पराजित होता हैं । दुर्योधन कर्ण अपयश लेकर पश्चात्ताप करते हुए लौटते हैं । पाण्डव प्रकट होते हैं । दुर्योधन, शकुनि पाण्डवों के यश को सह नहीं सकते थे । शकुनि का कथन कितना सटीक हैं—'पांडवों का नाम सुनते ही मेरे अंगों में आग लग जाती हैं
'लइयए पांडव-णामें, महु झत्ति पलिप्पइ अंगउ'-२२.१.९
कौरवों का यह संवाद स्वयंभू की काव्य प्रतिभा का अच्छा प्रदर्शन करता है । दुर्योधन पाण्डवों को पांच नगर देता है। पाण्डवों के विषय में कवि की यह उक्ति द्रष्टव्य है
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