Book Title: Ratnakaravatarika Part 3
Author(s): Vadidevsuri, Kalyanbodhivijay
Publisher: Jain Dharm Prasaran Trust Surat

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Page 14
________________ રત્નાકરાવતારિકા ભાગ-૩ सन्मात्रगोचरात् संग्रहान्नैगमो भावाभावभूमिकत्वाद् भूमविषयः ॥ ७-४७॥ सद्विशेषप्रकाशकाद्व्यवहारतः संग्रहः समस्तसत्समूहोपदर्शकत्वाद् बहुविषयः ॥ ४८ ॥ वर्तमानविषयादृजुसूत्राद् व्यवहारस्त्रिकालविषयावलम्बित्वादनल्पार्थः ॥७-४९॥ कालादिभेदेन भिन्नार्थोपदर्शिनः शब्दादृऋजुसूत्रस्तद्विपरीत वेदकत्वान्महार्थः ॥ ७-५० ॥ प्रतिपर्यायशब्दमर्थभेदमभीप्सतः समभिरू ढाच्छब्दस्तद्विपर्ययानुयायित्वात् प्रभूतविषयः ॥ ७-५१॥ प्रतिक्रियं विभिन्नमर्थं प्रतिजानानादेवम्भूतात् समभिरूढस्तदन्यथार्थस्थापकत्वान्महागोचरः ॥ ७-५२॥ नयवाक्यमपि स्वविषये प्रवर्तमानं विधिप्रतिषेधाभ्यां सप्तभङ्गीमनुव्रजति ॥ ७-५३ ॥ प्रमाणवदस्य फलं व्यवस्थापनीयम् ॥ ७-५४॥ प्रमाता प्रत्यक्षादिप्रसिद्ध आत्मा ॥ ७-५५ ॥ चैतन्यस्वरूपः परिणामी कर्ता साक्षाद्भोक्ता स्वदेहपरिमाणः प्रतिक्षेत्रं भिन्नः पौद्गलिकादृष्टवांश्चायम् ॥ ७-५६ ॥ तस्योपात्तपुंस्त्रीशरीरस्य सम्यग्ज्ञानक्रियाभ्यां कृत्स्नकर्मक्षयस्वरूपा सिद्धिः ॥ ७-५७॥ Jain Education International 000 ૧૩ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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