Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
View full book text
________________
पुरुषोत्तमजी मेनारिया के सुपर्द कर दिये। मेरी हस्तलिपि बड़ी दुष्पाठ्य है और मेनारियाजी ने जो विवरण लिये वे भी बड़ी उतावली मे लिये थे अतः प्रेस कापी करने करवाने का श्रम भी मेनारियाजी ने ही उठाया। विवरण लिखने की पद्धति--
प्रस्तुत ग्रन्थ में विवरण संग्रह की पद्धति मे आपको कई नवीनताएं प्रतीत होंगी अतः उनके सम्बन्ध में स्पष्टीकरण करदेना आवश्यक है । प्राचीन हस्तलिखित प्रतियो के अवलोकन एवं सूची बनाने में मेरी अत्यधिक अभिरुचि रही है। मेरे साहित्य साधना के १८ वर्ष बहुत कुछ इसी कार्य में बीते हैं। पाश्चात्य एवं भारतीय अनेक विद्वानों के सम्पादित पचासों सूचीपत्रो (जितने भी अधिक मुझे ज्ञात हुए व मिल सके) को देखा एवं ४० हजार के लगभग प्रतियो की सूची तो मैने स्वयं बनाई है अतः उसके यन्किचित् अनुभव के बल पर मुझे प्रचलित पद्धति में कुछ सुधार करना
आवश्यक प्रतीत हुआ। मेरे नम्र मतानुसार विवरण मे अपनी ओर से कम से कम लिखकर ग्रन्थकार, ग्रन्थ एवं प्रति के सम्बन्ध मे प्राप्त प्रति से ही आवश्यक उद्धरण अधिक रूप में लिया जाना ज्यादा अच्छा है । पाठको को बतलाने योग्य जो कुछ समझा जाता है वह ग्रन्थकार के शब्दो ही में रखा जाय तो उसकी प्रमाणिकता बहुत बढ़ जायगी। विवरण लिखने वालों की जरासी असावधानी या भूल-भ्रान्ति से परवर्ती पचासो ग्रन्थ उस भूल के शिकार हो जाते मैने स्वयं देखा है क्योंकि उसको प्रमाण माने बिना काम चलता नहीं और उसके अनुकरण मे जितने भी व्यक्ति लिखेंगे सभी उसी भ्रान्ति को दुहराते जायेंगे। मौलिक अन्वेषण व जाँच कर लिखने वाले हैं कितने ? अतः मैंने ग्रन्थ के उद्धरण अधिक प्रमाण में लिये हैं और अपनी. ओर से कुछ भी नहीं या कम से कम लिखने की नीति बरती है। ग्रन्थ का नाम, अन्धकार उनका जितना भी परिचय ग्रन्थ में है, ग्रन्थ का रचनाकाल, ग्रन्थ रचने का आधार आदि ज्ञातव्य जिस ग्रन्थ में संक्षेप या विस्तार से जितना मिला विवरण में ले लिया है जिससे प्रत्येक व्यक्ति ऊपर निर्दिष्ट मेरे लिखतसार को स्वयं जांचकर निर्णय कर सके । जहाँतक हो सका है ग्रन्थ के पद्यों की संख्या का भी निर्देश कर दिया है। अपनी निर्धारितनीति को मैं सर्वत्र नहीं बरत सका, इसका कारण है विवरण तैयार करते समय सब प्रतियों का सामने न होना । कई संग्रहालयो के वर्षों पहले एवं उतावल मे नोट्स कर लिये गये थे और विवरण तैयार करते समय प्रतिये सामने न थी। अतः पूर्वकालीन नोट्स का ही उपयोग कर संतोष करना पड़ा। प्रति के लेखनकाल के सम्बन्ध