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प्रकाशकीय
परम श्रद्धेय युगपुरुष गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. का व्यक्तित्व और कृतित्व इतना व्यापक और लोकोपकारी रहा है कि आज उनके सम्बन्ध में जो कुछ भी लिखा जाय, कहा जाय वह सब प्रासंगिक
जैन व जैनेतर हजारों व्यक्तियों पर उनके इतने उपकार हैं कि उनकी स्मृति से ही वे आज भाव-विभोर हो जाते हैं। गुरुदेव के प्रति असीम समर्पण और निष्ठा से जुड़े हजारों श्रद्धालुजन आज भी उनके साहित्य, शिक्षा, उपदेश और उनके द्वारा दिखाये साधना मार्ग पर बढ़कर अपना कल्याण कर रहे हैं।
गुरुदेवश्री पुष्कर मुनिजी अपने युग के एक महान साधक थे। ज्ञानयोगी जपयोगी और ध्यानयोगी होने के साथ-साथ वे एक सहज योगी भी थे। उनकी तेजोदीप्त मुखमुद्रा तो स्वयं भी योगी के अभिराम रूप को व्यक्त करती थीं, किन्तु उनकी सहज जीवन शैली, सदा प्रसन्न मुख मुद्रा, कष्ट सहिष्णुता और जीवमात्र के प्रति असीम करुणाशीलता का स्मरण होने पर आज किसका हृदय गद्गद् नहीं हो जाता? ऐसे महापुरुष शताब्दियों में एकाध ही जन्म लेते हैं।
जन भावना का आदर करते हुए हमारी संस्था ने यह निर्णय लिया है कि परम श्रद्धेय गुरुदेव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उजागर करने वाला एक स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित किया जाय। गुरुदेव श्री के स्वर्गवास के समाचार सुनकर लोगों ने स्वतः ही श्रद्धांजलियाँ, संस्मरण आदि इतनी विपुल सामग्री प्रेषित की है, यदि उसे पूर्ण रूप से प्रकाशित किया जाता तो शायद एक नहीं, दो स्मृति ग्रंथ भी निकल जाते। किन्तु ग्रंथपाठकों की पठन क्षमता, समय सीमा आदि सभी का विचार करके सामग्री को काफी संक्षिप्त करना पड़ा और अनेक विद्वानों के उपयोगी सुन्दर लेखों को भी छोड़ना पड़ा।
परम श्रद्धेय आचार्य सम्राट महामनीषी श्री देवेन्द्र मुनिजी म. ने स्वयं अत्यधिक श्रम करके, अपने व्यस्ततम समय में से समय निकालकर ग्रंथ की सामग्री का अवलोकन किया, सुन्दर सम्पादन किया। परिष्कार एवं चयन में मार्गदर्शन किया। उनके मार्गदर्शन अनुसार गुरुदेव श्री के शिष्य श्री दिनेश मुनिजी ने इसके संयोजन, संकलन, संचयन और साज-सज्जा आदि के लिए काफी श्रम किया और संपादक मंडल को भी लेख आदि लिखने हेतु बराबर प्रेरित करते रहे।
हमें प्रसन्नता है कि परम श्रद्धेय आचार्य सम्राट, विद्वान संपादक मंडल, प्रबन्ध सम्पादक तथा गुरुभक्त उदारमना श्रद्धालु श्रावकों के सहयोग से हम इस ग्रंथ को रमणीय रूप में प्रस्तुत कर सके। यह हमारे लिये प्रसन्नता की बात है। यद्यपि प्रकाशन में विलम्ब हो गया है, परन्तु फिर भी हमें संतोष है कि यह कार्य हमारी भावना को साकारता प्रदान कर सकेगा और श्रद्धालु जनों को परितोष प्राप्त होगा.......
-श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय
अध्यक्ष - सम्पत्ति लाल वोरा कोषाध्यक्ष - चुन्नीलाल धर्मावत