Book Title: Puratana Prabandha Sangraha
Author(s): Jinvijay
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ उदारात्मा क्षमामूर्तिः साधुश्रेष्ठो गुणिप्रियः । यो मम परमः पूज्यो गुरुवत् , शिष्यवत्सलः ॥ यस्य शिक्षाप्रसादेन प्राप्ता मया विशिष्टदृक् । यया दृष्टो ग्रन्थराशिरीदृक् पौरातनो महान् ॥ सुगृहीतनाम्नस्तस्य प्रवर्तकशिरोमणेः । कान्तिविजयपादस्य पावने करपङ्कजे ॥ अनन्यभक्तिभावेन विनम्रशिरसा मया । पुरातनप्रबन्धानां संग्रहोऽयं समर्प्यते ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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