Book Title: Pravachan Pariksha Part 01
Author(s): Dharmsagar,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीप्रवचनपरीक्षा ४विश्रामे ॥३९४॥
वदतों वाणी, सव दहीति याचतः । प्रहाद्वगजननी, श्राग्वध्यवरयोरिव ॥शा" संगही वत्थादीहि उवग्गहो पाणादीहि, गणहर-- साध्वीमिः | परूवणत्ति गतं,इआणि खित्तमग्गणा,पडिलेहणा इत्यर्थः,'खित्तस्स यगाहा तं पुण खेत्तं पडिलेहिअवं, किं संजतीओ गच्छंति उदाहु सह बिहारः संजया गच्छंति ?, उच्यते, 'संजतीगमणे' गाहा कंठा, जहा सउणीवंदे वीरल्लगो लीणो, अवंताओवि केणइ पुरिसेण सबाओऽवि अभिभूयंते, जं वा रुञ्चति तं करिजति, से जधा वा-अंबपेसिआति वा सूत्रापकाः, पेल्लिञ्जजति वा पडिणीएणं, अवित्र महिलाओ तुच्छाओ आहारादिलोभेणं 'तुज्छेणवि' गाहा कंठा, 'एतेहिं गाहा कंठा, आह-ता को वच्चति ?, उच्यते, गणधरो, जो चरति सो | तणं वहति, हथिस्स चारी हत्थी चेव समत्थो बहेउं एगसराए, एवं तस्स भरस्स गणधरो चेव समत्थो, अहना जयहा हथिस्स अण्णे चेव महिसादिणो आणेति, एवमिहावि गणहरो दुखणओ होजा तो अण्णो तग्गुण एव पडिलेहओ जाति. तं पुण केरिसं खेतं? 'जत्थाधि' गाथाद्वयं कंठं. 'वसही ति तत्थ वसही केरिसा, गुत्ता-बतिपरिखित्ता कुडुपरिखित्ता वा, गुत्तदुवारा सकवाडा, ‘घणकुड्डा' गाहा कंठा, सिजायरो कुलपुत्तो सत्तमंतो जो ण केणवि खोभिञ्जति, गंभीरो अचवलो, उच्चारपासवणारयगाए अंतो न किंचिवि भणंति 'ओभासण'त्ति एरिसो अजाण वसहिं ओभासिजति, दिग्णाए भण्णति-जइ चिंतेसि मए धूआसुण्हाओ वा जहा सारखिबाओ, जइ पडिवञ्जति तो ठविञ्जति, जइ अ अजाओ अब्भुवगच्छंति अण्णपरिवाडीए, | 'णासण्ण'गाहा कंठा, 'भोइ'गाथाद्वयं, सिज्जायरो एरिसो, अण्णपरिवाडीए 'विआरे'त्ति सण्णाभूमी, उस्सग्गेणं पुरोहडे विजमाणे असतिए हिण्डंति 'वीआरबहु' गाहा, पुरोहडे विजमाणे अजइ एहिजत्ति, अणावात'गाहा चउसुवि ४,अंतोचित्ति वइणीओ अब्भतरे पुरोहडे ततिअथंडिलं आवाते असंलोग बञ्जत्ता जति पढमे बितिए चउत्थे वा बोसरति, जो एम ततिआ अणुण्णाया, l||३९४॥
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