Book Title: Pravachan Pariksha Part 01
Author(s): Dharmsagar,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीप्रवचनपरीक्षा ४विश्राम ॥४१८॥
र्यापाथि| काविचारः
अमत्ताणं जहिटफलसंपत्ती हवेज्जा, ता गोअमा! अपडिकंताए इरिआवाहआए न कप्पड़ चेव काउं किंचिवि चिइवंदणसज्झाणा- इअं फलासायममिक्खुगाणं, एएण?णं गोअमा! एवं बुचइ-जहाणं गोअमाः समुत्तत्थोभयं पंचमंगलं थिरपरिचिअंकाऊण तओ इरिआवहिअं अज्झीए, से भयवं : कयराए विहीए तमिरिआवहिअमहीए?,गोअमा! जहा णं पंचमंगलमहासुर्खधंति (१९-२०) श्रीमहानिशीथतृतीयाध्ययने,उपलक्षणाद् ईर्यापथप्रतिक्रमणमकृत्वा नान्यत्किमपि कुर्यात्तदशुद्धतापत्ते"रिति श्रीहरिभद्रीयदशवकालिकवृत्तिरपि, न च क्वापि मामायिकमशुद्धचित्तेन कर्त्तव्यम् , अयं भावः-यावदीर्याप्रतिक्रान्तिप्रतिबद्धं बृहच्चैत्यवन्दनादि धर्मानुष्ठानं श्रीमहानिशीथोक्तप्रयोजनया ईर्याप्रतिक्रान्त्या चित्तशुद्धिं विधायैव कर्तव्यं, सामायिक पुनरशुद्धेनैव चित्तेन कर्तव्यमित्येवं क्वाप्यागमेऽनुपलम्भात , तथा परम्पराया अप्यभावायुक्तिक्षमत्वाभावाच्च कथं सामायिके पश्चादीर्येति गाथार्थः ॥२२४॥ अथ परः शङ्कते
आहावस्मयचुग्णिप्पमुहेसु करेमिभंतच्चाइ । काऊण य सामों पच्छा इरिअत्ति पयडवयं ॥२२५||
आह पर:- ननु भो आवश्यकचूर्णिप्रमुखेषु-श्रीआवश्यकचूर्णिवृत्तिपञ्चाशकवृत्तियोशशास्रवृत्तिनवपदप्रकरणवृत्तिश्रावक-| दिनकृत्यवृत्तिश्राद्धविधिप्रमुखेपु 'करेमि भंते'इत्यादि यावत मामाइअं काऊण पच्छा इरिआवहिआए पडिकमइत्ति प्रकटवचःस्पष्टवचनमागमे विद्यत एवेति. तत्र श्री आवश्यकचूर्णियथा "मामाइ नाम सावज्जोगपरिवजणं निरवजजोगपडिसेवणं च, तं सावएण कथं काय?,मो दुविहो-इदि पत्तो अणिदि पत्तो अ,जो सो अणिदि पत्तो सोचेइअघरे साहुसमीवे घरे वा पोसहसालाए वा जत्थ वा वीसमह अच्छइ वा निवावारी सम्बन्ध करेइ सवं. चउठाणेसु निअमा कायवं, तंजहा-चेइघरे मामले
NARENDINAR
॥४१८॥
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