Book Title: Pratidhwani
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 8
________________ सम्पादकीय श्री देवेन्द्र मुनि जी स्थानकवासी जैनसमाज की नई पीढ़ी के तरुण साहित्यकार हैं । उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर लिखा है, और जमकर लिखा है। वे अध्ययनशील हैं, अनु संधित्सु है और उदार समीक्षक भी है, इसलिए उनकी कृतियों में, चाहे वह शोधनिबन्ध है, ऐतिहासिकचर्चा है, जीवनचरित्र है, विचारसूक्तियाँ है, या कहानी और रूपक हैं, प्रायः उनमें अध्ययन, अनुसंधान और चिंतन मनन की गहरी छाप मिलती है । प्रस्तुत पुस्तक उनका एक कहानी संग्रह है, किन्तु यह सिर्फ कहानीसंग्रह न होकर एक विचार-ग्रन्थ भी है। इसमें प्रेरक विचार, अनुभूत सूक्त एवं महापुरुषों की उक्तियाँ भी हैं । जब मुझे सम्पादन के लिए यह पुस्तक मिली तो मैं इसकी कहानियाँ पढ़कर प्रफुल्ल हो उठा । प्रायः कहानियों में एक-न-एक जीवनस्पर्शी प्रेरणा छिपी है, जीवन का कोई गहरा सत्य व्यक्त होतासा लगता है, और लगता है कोई प्रज्ञा-पुरुष अपने ज्ञान-चक्षओं से देखे हुए जीवन एवं जगत के रहस्य - रोमांच को अनुभव की वाणी में खोल कर रख रहा है । कहानियों को भाव-भाषा आदि की दृष्टि से परिमार्जित करने के बाद इसके नामकरण का प्रश्न मेरे मन में आया तो मैं कुछ क्षण पुस्तक की कहानियों को ही उलट-पुलट कर पढ़ने लगा। पुस्तक Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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