Book Title: Pratidhwani
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 6
________________ लेखक की कलम से गंभीर विचारों को पढ़ते-पढ़ते जब कभी मन ऊब जाता है, तो कहानियाँ और जीवनचरित्र पढ़कर मन की सुस्ती दूर कर लेता हूँ, इसीप्रकार गंभीर विषयों पर लिखते-लिखते जब मस्तिष्क विश्राम चाहने लगता है तो कथा-कहानियाँ और सूक्तियाँ लिखने लग जाता हूं, इससे मस्तिष्क की थकान भी दूर हो जाती है, और नई स्फूर्ति से मन तरोताजा भी हो जाता है। पिछले तीन-चार वर्षों में मैंने अनुभव किया कि कहानियाँ, जीवन-चरित्र वास्तव में ही मानसिक विश्राम के साथ-साथ कर्तव्य की नई स्फूर्ति और प्रेरणा जगाने में भी अद्वितीय सिद्ध हुई हैं । पाठक उन्हें चाव से पढ़ता है, और उनसे प्रकट होने वाली प्रेरणा के प्रति बड़े सीधे और प्रभावकारी ढंग से आकृष्ट होता है । जैसे गरिष्ट भोजन के साथ-साथ कुछ सुपाच्य और सुस्वाद भोजन भी आवश्यक होता है, वैसे ही गंभीर विषयों के अध्ययन के साथ-साथ कुछ हलका और रुचिकर अध्ययन भी आवश्यक होता है। मन की यह आवश्यकता कथा कहानियाँ आदि से पूरी हो जाती है। ___इधर में छोटे-छोटे प्रेरक रूपक, कहानियाँ आदि की चारपाँच पुस्तकें मैंने लिखी और वे प्रकाशित हुई । पाठकों ने उन्हें चाव से अपनाया, विद्वानों ने भी उन्हें सराहा और सामान्य Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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