Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 11
________________ !!!!!!!!!!! LF आचार्य शान्तिसागर महाराज के अनेक शिष्य हुए। द्वितीय पट्टाचार्य आचार्य सूर्यसागर बहुश्रुत विद्वान् थे। दिगम्बर जैन परम्परा में अपनी साहित्य - सपर्या के माध्यम से जैन साहित्य को सुदृद और स्थायी बनाने वालों में आचार्य सूर्यसागर जी का नाम प्रथम पंक्ति में आता है। उन्होंने लगभग ३५ ग्रन्थों का संकलन / प्रणयन किया था। आचार्य सूर्यसागर के बाद इस परम्परा में आचार्य विजयसागर आचार्य विमलसागर (भिण्ड वाले) व आचार्य सुमतिसागर आदि प्रसिद्ध आचार्य हुए। इसी परम्परा में आचार्य सुमतिसागर जी के शिष्य उपाध्याय ज्ञानसागर महाराज ने विगत दशाब्दी में जो धर्ममन्त्र, विशेषतः उत्तरभारत के नवयुवकों में फूंका है वह धर्म / चरित्र - विमुख होती युवा पीढ़ी के लिए शुभ संकेत है। सराकों के उत्थान मे जो योगदान उपाध्याय श्री दे रहे हैं वह अभिवन्दनीय है । उपाध्याय श्री के सान्निध्य में अनेक स्थानों पर धार्मिक / साहित्यिक/सांस्कृतिक विषयों पर सफल गोष्ठियाँ भी हो चुकी हैं। उपाध्याय ज्ञानसागर महाराज का चातुर्मास १९९० में शाहपुर (मुजफ्फरनगर) में हुआ था। इस अवसर पर प्रशान्तमूर्ति आचार्य श्री १०८ शान्तिसागरजी महाराज ( छाणी) स्मारिका का प्रकाशन डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल जयपुर, पं. महेन्द्रकुमार 'महेश' शास्त्री मेरठ, डॉ. रमेशचन्द जैन बिजनौर, डॉ. सुपार्श्वकुमार एव डॉ श्रेयांशकुमार बड़ौत, डॉ. जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर के सम्पादकत्व एवं डॉ. कपूरचन्द जैन खतौली के सयोजक - सम्पादकत्व में हुआ था। उस समय यह अनुभव किया गया कि छाणी जी महाराज के विराट व्यक्तित्व को रेखांकित करने हेतु एक स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन आवश्यक है। तत्काल एक सम्पादक मण्डल का गठन किया गया जिसका संयोजक इतिहास मनीषी वयोवृद्ध डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल को मनोनीत किया गया। स्मृति ग्रन्थ को चार खण्डों में विभक्त किया गया है। प्रथम खण्ड में पूज्य मुनिराजों / आर्यिकाओं/ अन्य साधकों / राजनेताओं / विद्वानों/श्रेष्ठि प्रवरों / समाजसेवियों से प्राप्त श्रद्धाञ्जलियों एवं संस्मरणों को समाहित किया गया है। 'आचार्य शान्तिसागर छाणी एवं उनकी परम्परा' नामक द्वितीय खण्ड प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ !!!!!!!! XI 5

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