Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ FELEHELLELE ANSAR 454545454545454545454545454 LEI + ई० पू० द्वितीय शताब्दी में सम्राट खारवेल ने जैन मुनियों का एक सम्मेलन बुलवाया था, जिसमें मथुरा, गिरनार उज्जैन, कॉचीपुर आदि के दिगम्बर जैन मनि आये थे। सिद्धसेन नामक दिगम्बर जैनाचार्य ने अपने चमत्कारों से चन्द्रगुप्त को जैन धर्म में दीक्षित किया था। TE गुप्तकाल के बाद सम्राट हर्षवर्धन ने स्वयं नग्न क्षपणक के दर्शन किये - थे, ऐसा हर्षचारित से प्रमाणित है। कन्नौज के राजा, भोजपरिहार के दरबार में जैनाचार्य वप्पसरि ने आदर प्राप्त किया था। महाराज भोज के समकालीन - आचार्य मानतुंग प्रसिद्ध ही हैं। चन्देलकाल में दिगम्बराचार्य नेमिचन्द्र हुए। तेरहवीं शती में यूरोपीय यात्री मार्कोपोलो ने अपनी भारत यात्रा में दिगम्बर - साधुओं को देखा था। अकबर से समय वैराट नगर में दिगम्बर मुनियों का संघ विराजमान था। ब्रिटिश काल में महारानी विक्टोरिया की १८५८ को घोषणा के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता थी। इन दिनों UP दिगम्बर मुनियों का विहार स्वच्छन्द होता था। यह इस बात से भी प्रमाणित है कि हैदराबाद के निजाम ने (भ्रमण) पर रोक लगा दी थी, जिसे जैनों ने ET अपने प्रभाव से हटवाया था। Le चौदहवीं से बीसवीं शती के प्रारम्भ तक दिगम्बर जैन मुनि परम्परा कुछ अवरुद्ध सी हो गई थी। शास्त्रों में दिगम्बर जैन मुनियों के जिस स्वरूप का अध्ययन करते हैं उसका दर्शन असम्भव सा था। इस असम्भव को जिन दो महान् आचार्यों ने सम्भव बनाया और जिनकी कृपा से आज हम दिगम्बर मुनि परम्परा को पल्लवित/पुष्पित देख रहे हैं, वे हैं आचार्य शान्तिसागर महाराज (दक्षिण) और आचार्य शान्तिसागर महाराज (छाणी)। दोनों ही समकालिक हैं। दोनों ही शान्ति के सागर हैं कहीं-कहीं तो नाम-साम्य के कारण दोनों को एक समझ लिया गया है। दोनों में इतना मेल था कि व्यावर (राजस्थान) में दोनों का ससंघ एक साथ चातुर्मास हुआ था। माचार्य शान्तिसागर महाराज का जन्म 'छाणी' ग्राम में हुआ था, जो उदयपुर के समीप राजस्थान में है। इसी कारण वे 'छाणी' वाले महाराज के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने समग्र भारत में विहार किया किन्तु मुख्यतः उत्तर भारत में अधिक रहे इस कारण वे आ० शान्तिसागर महाराज (उत्तर) के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। ऐसी प्रसिद्धि का एक कारण उन्हें चा.च. शान्तिसागर महाराज (दक्षिण) से अलग दिखाना भी रहा है। AA ELEPHREERNERBA - - . HHHHHHHI - 1 . सा ASIA - - - - प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ IX नानामामामामामामामामामामामामा IFIFIEIFIFIFIEIFIEIFIFIFIFIFIFT

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 595