Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 10
________________ !!!!!! 696965 आ० शान्तिसागर महाराज का बचपन का नाम केवलदास था, जिन्हें उन्होने वास्तव में अन्वयार्थक (केवल = अद्वितीय, अनोखा, अकेला) बना दिया। इनके पिता का नाम श्री भागचन्द्र एवं माता का नाम मणिका बाई था । मणिका के इस माणिक ने न जाने कितनों को माणिक बना स्व-पर जीवन को कृतार्थ किया। बचपन से ही आपमें दीक्षा के बीज अंकुरित हो रहे थे इसी कारण आप बाल ब्रह्मचारी रहे। पहले ब्रह्मचर्यव्रत फिर क्षुल्लक दीक्षा, मुनिदीक्षा और अन्त में उस अवस्था का सर्वोच्च पद आचार्य पद आपने प्राप्त किया। सम्वत २००१ में सागवाड़ा (राजस्थान) मे आपकी समाधि हुई पर अपने यश शरीर से वे आज भी हमारे मध्य विराजमान हैं। छाणी जी महाराज का व्यक्तित्व इतना तेजोमय था कि आबाल वृद्ध उन्हें देखकर अलौकिक शान्ति का अनुभव करते थे। उन्हीं का प्रताप-पुञ्ज है कि छाणी जैसा छोटा सा ग्राम आज अतिशय क्षेत्र बन गया है। छाणी जी को किसी बड़े विद्वान / मुनि / गुरु का सान्निध्य प्राप्त नहीं हुआ, वे स्वतः प्रेरणा से ही विरक्त हुए, उनका परिवार ही वैराग्यमय था, उनकी छोटी बहिन ने आर्यिका दीक्षा लेकर समाधिमरण किया था इससे यह बात सिद्ध होती है कि निकट भव्य के लिए बहुत बड़े प्रेरक / उपदेशक / विद्वान की आवश्यकता नहीं होती, स्वतः प्रेरणा ही उसे निवृत्ति मार्ग का पथिक बना देती है। छाणी जी महाराज समाज सुधार के इतिहास में युगों-युगों तक याद किये जाते रहेंगे। उन दिनो कन्याओं के क्रय-विक्रय की प्रथा थी । आचार्य श्री ने 'कन्या विक्रय कर प्राप्त किया गया पैसा मांस के समान है' कहकर इस प्रथा को बन्द कराया। इसी प्रकार मृत्यु के बाद छाती पीटने की प्रथा, विधवा स्त्री को काले कपड़े पहनाने की प्रथा उनके उपदेशों से बन्द हुई । छाणी के जमींदार ने उनके सदुपदेश से अपने राज्य में सदैव के लिए बलि प्रथा बन्द करा दी थी। उन पर उपसर्ग भी कम नहीं हुए। बड़वानी में उन पर मोटर चलाई गई, पर आश्चर्य कि मोटर टूट गई और आचार्य श्री सकुशल रहे। यह उनकी दैगम्बरी तपस्या और त्याग का ही प्रभाव था। अनेक ग्रन्थों का प्रकाशन उनके सदुपदेश से हुआ, जिससे आज हमारी श्रुत परम्परा सुरक्षित है। अनेक स्थानों पर जैन पाठशालाओं की स्थापना भी उनके उपदेशों से हुई। X प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति - ग्रन्थ S தததததத

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