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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन . . अन्यथानुपपत्ति या अन्यथानुपपन्नत्व भी कहते हैं । साधन और हेतु ये दोनों शब्द पर्यायवाची हैं।
हेतु का लक्षण साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः ॥१५॥ साध्य के साथ जिसका अविनाभाव निश्चित है उसे हेतु कहते हैं । अग्नि के साथ धूम का अविनाभाव तर्क प्रमाण के द्वारा निश्चित हो जाता है । अत: धूम को हेतु कहते हैं । धूम के द्वारा पर्वत में अग्नि को सिद्ध किया जाता है । इसलिए अग्नि साध्य है । यह तो पहले ही बतलाया जा चुक है कि साध्य और साधन में अविनाभाव सम्बन्ध होता है।
त्रैरूप्य निरास पूर्वपक्ष- .
बौद्ध त्रैरूप्य को हेतु का लक्षण मानते हैं । वे कहते हैं कि हेतु के तीन रूप ( तीन विशेषतायें ) होते हैं जो इस प्रकार हैं-पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व और विपक्षासत्त्व । हेतु को पक्ष में रहना चाहिए, सपक्ष में भी रहना चाहिए, किन्तु विपक्ष में कभी नहीं रहना चाहिए । पर्वतोऽयं वह्निमान् धूमवत्वात्' । यह पर्वत अग्निवाला है, धूमवाला होने से । इस अनुमान में पर्वत पक्ष है, महानस ( भोजनशाला ) सपक्ष है और नदी विपक्ष है । बौद्धन्याय में हेतु के तीन रूप होने से हेत्वाभास भी तीन होते हैं-असिद्ध, विरुद्ध और अनैकान्तिक । पक्षधर्मत्व के द्वारा असिद्ध का, सपक्षसत्त्व के द्वारा विरुद्ध का और विपक्षासत्त्व के द्वारा अनैकान्तिक हेत्वाभास का निराकरण किया जाता है । इस प्रकार त्रैरूप्य को हेतु का लक्षण मानना आवश्यक है । ऐसा बौद्धों का मत है । उत्तरपक्ष
बोद्धों का उक्त कथन समीचीन नहीं है । पदार्थके असाधारण स्वभाव को लक्षण कहते हैं, जैसे कि अग्नि का लक्षण उष्णता है । त्रैरूप्य में असाधारणता नहीं है । क्योंकि यह हेतु और हेत्वाभास दोनों में पाया जाता है । यह सत्य है कि धूम हेतु में पक्षधर्मत्वादि तीनों रूप पायें जाते हैं, किन्तु हेत्वाभास में भी ये तीन रूप देखे जाते हैं । किसी ने कहा-'बुद्धोऽसर्वज्ञः