Book Title: Prameykamalmarttand Parishilan
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 319
________________ २६४ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन .. ५६. तिर्यक्सामान्य-सदृश ( सामान्य ) परिणाम को तिर्यक्सामान्य कहते हैं । जैसे खण्डी, मुण्डी आदि गायों में रहने वाला गोत्व तिर्यक् सामान्य है। ५७. ऊर्ध्वतासामान्य-पूर्व और उत्तर पर्यायों में रहने वाले द्रव्य को ऊर्ध्वतासामान्य कहते हैं । जैसे स्थास, कोश, कुशूल आदि घट की पर्यायों में रहनेवाली मिट्टी ऊर्ध्वतासामान्य कहलाता है। .. ५८. पर्यायविशेष-एक द्रव्य में क्रम से होने वाले परिणामों को पर्यायविशेष कहते हैं । जैसे आत्मा में क्रम से होने वाले हर्ष, विषाद आदि परिणाम पर्यायविशेष कहलाते हैं । ५९. व्यतिरेकविशेष-एक पदार्थ से विजातीय अन्य पदार्थ में रहने वाले विसदृश परिणाम को व्यतिरेकविशेष कहते हैं । जैसे गाय से भैंस में व्यतिरेकविशेष पाया जाता है । ६०. बालप्रयोगाभास-अनुमान के प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन-इन पाँच अवयवों का प्रयोग न करके कुछ कम अवयवों का प्रयोग करना बालप्रयोगाभास है । क्योंकि बालकों को समझाने के लिए पाँचों अवयवों का प्रयोग आवश्यक है । ६१. करणज्ञान-प्रमिति की उत्पत्ति में जो साधकतम ( विशिष्ट ) कारण होता है उसे करण कहते हैं । घटादि की प्रमिति ज्ञान के द्वारा होती है । अतः ज्ञान करण कहलाता है । यह करणज्ञान विशद ( प्रत्यक्ष ) होता है । किन्तु मीमांसक इसे अविशद मानते हैं । ६२. उपलब्धिलक्षणप्राप्त-जिस वस्तु में चक्षु इन्द्रिय के द्वारा उपलब्ध होने की योग्यता होती है उसे उपलब्धिलक्षणप्राप्त ( दृश्य ) कहते हैं । जैसे घट उपलब्धिलक्षणप्राप्त है और पिशाच अनुपलब्धिलक्षणप्राप्त है । ६३. लौकायतिक-चार्वाक का दूसरा नाम लौकायतिक है । जो चारु ( सुन्दर ) वचन बोलते हैं अथवा आत्मा, परलोक आदि का चर्वण ( भक्षण ) करते हैं उन्हें चार्वाक कहते हैं । ये साधारण लोगों की तरह आचरण करते हैं । इसलिए इनको लौकायतिक भी कहते हैं । इनके जीवन का लक्ष्य है-खाओ, पिओ और मस्त रहों । वर्तमान में भौतिकवादियों को चार्वाक कहा जा सकता है ।

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