Book Title: Prameykamalmarttand Parishilan
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 329
________________ २७४ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन पदार्थों में जो सम्बन्ध होता है उसका नाम समवाय है । जैसे गुण और . गुणी अथवा ज्ञान और आत्मा के सम्बन्ध का नाम समवाय कहलाता है । . वैशेषिकों ने समवाय को एक पदार्थ माना है । . ७८. समवायी कारण-समवाय सम्बन्ध से जिसमें कार्य की उत्पत्ति होती है वह समवायी कारण कहलाता है । जैसे तन्तु वस्त्र का समवायी कारण है, मिट्टी घट का समवायी कारण है । समवायी कारण को उपादान कारण कह सकते हैं । ७९. असमवायी कारण-कार्य के साथ अथवा कारण के साथ एक वस्तु में समवाय सम्बन्ध से रहते हुए जो कारण होता है वह असमवायी कारण कहलाता है । जैसे तन्तुसंयोग वस्त्र का असमवायी कारण है और तन्तुरूप पटरूप का असमवायी कारण है । ८०. निमित्त कारण-समवायी और असमवायी कारण से भिन्न कारण : को निमित्त कारण कहते हैं । जैसे घट की उत्पत्ति में कुंभकार, दण्ड, चक्र आदि निमित्त कारण होते हैं । ८१. प्रागभाव-कार्य की उत्पत्ति के पहले कारण में कार्य के अभाव को प्रागभाव कहते हैं । जैसे घट की उत्पत्ति के पहले मिट्टी में घट का जो अभाव रहता है वही प्रागभाव है । प्रागभाव अनादि और सान्त होता है । ८२. प्रध्वंसाभाव-किसी वस्तु का नाश हो जाने पर उसके अभाव को प्रध्वंसाभाव कहते हैं । घट के फूट जाने पर घट का प्रध्वंसाभाव हो जाता है । प्रध्वंसाभाव सादि और अनन्त है । ८३. अन्योन्याभाव-सजातीय पदार्थों में जो पारस्परिक भेद पाया जाता है उसका नाम अन्योन्याभाव है । जैसे घट और पट में अन्योन्याभाव रहता है । घट पटरूप नहीं है और पट घटरूप नहीं है । यही उन दोनों में अन्योन्याभाव है। ८४. अत्यन्ताभाव-जिन पदार्थों का स्वरूप सदा ही पृथक्-पृथक् रहता है उनमें अत्यन्ताभाव होता है । जैसे चेतन और अचेतन पदार्थों में अत्यन्ताभाव पाया जाता है । चेतन कभी अचेतनरूप नहीं होता और अचेतन कभी चेतनरूप नहीं होता । यही अत्यन्ताभाव है । ' ८५. संशय-यह 'स्थाणु है या पुरुष है' ऐसा जो चलितप्रतिपत्तिरूप ज्ञान

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