Book Title: Prameykamalmarttand Parishilan
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 320
________________ परिशिष्ट-२ : पारिभाषिक शब्द २६५ ६४. जैमिनीय-महर्षि जैमिनी मीमांसादर्शन के सूत्रकार तथा प्रवर्तक हैं । इसलिए जैमिनी के अनुयायियों को जैमिनीय ( मीमांसक ) कहते हैं । ६५. यौग-नैयायिक और वैशेषिकों का सम्मिलित नाम यौग है । अनेक बातों में न्याय और वैशेषिक दर्शनों में समानता पाई जाती है । इसलिए इन दोनों के योग ( जोड़ी ) को यौग नाम दे दिया गया है। ६६. सौगात- महात्मा बुद्ध का एक नाम सुगत भी है। अतः सुगत के अनुयायियों को सौगत कहते हैं। बौद्ध और सौगत दोनों पर्यायवाची शब्द हैं। . (ख) प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलनगत विशिष्ट शब्दों की परिभाषा १. कारकसाकल्य-आत्मा, मन, अर्थ, आलोक, इन्द्रिय आदि जिन-जिन कारणों से अर्थ की उपलब्धि होती है उनकी समग्रता का नाम कारकसाकल्य है । प्राचीन नैयायिक कारकसाकल्य को प्रमाण मानते हैं । २. सन्निकर्ष-चक्षु आदि. इन्द्रियों का अर्थ के साथ जो सम्बन्ध होता है उसे सन्निकर्ष कहते हैं । चक्षु का घट के साथ सन्निकर्ष होने से घट का ज्ञान होता है । नैंयायिक और वैशेषिक सन्निकर्ष को प्रमाण मानते हैं । ३. इन्द्रियवृत्ति-इन्द्रियवृत्ति का अर्थ है इन्द्रियों का व्यापार । चक्षु आदि इन्द्रियाँ जब घटादि अर्थ के प्रति व्यापार करती हैं तभी घटादि अर्थों का ज्ञान होता है । सांख्य इन्द्रियवृत्ति को प्रमाण मानते हैं । ४. ज्ञातव्यापार-पदार्थ को जानने के लिए ज्ञाता का जो व्यापार होता है उसका नाम ज्ञातृव्यापार है । प्रभाकर तथा उसके अनुयायी प्राभाकर ज्ञातृव्यापार को प्रमाण मानते हैं । ५. निर्विकल्पक प्रत्यक्ष-बौद्ध प्रत्यक्ष को निर्विकल्पक अर्थात् कल्पना रहित मानते हैं । कल्पना का अर्थ है प्रत्यक्ष का शब्द के साथ संसर्ग । उनके अनुसार प्रत्यक्ष शब्दसंसर्गरहित अर्थात् निर्विकल्पक होता है । ६. अख्यातिवाद-चार्वाक विपर्ययज्ञान को निरालम्बन मानते हैं । अर्थात् मरीचिका में जो जल ज्ञान होता है उसका विषय न तो जल है और न मरीचिका । यही अख्यातिवाद है । ७. असत्ख्यातिवाद-सौत्रान्तिक विपर्ययज्ञान को असत्ख्यातिरूप मानते हैं । शुक्तिका में जो रजत का प्रतिभास होता है वह असत् पदार्थ का प्रतिभास है । इसी का नाम असत्ख्यातिवाद है ।

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