Book Title: Prameykamalmarttand Parishilan
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 318
________________ परिशिष्ट-२ : पारिभाषिक शब्द २६३ ४७. निगमन-प्रतिज्ञा के उपसंहार को निगमन कहते हैं । जैसे धूमवान् होने से पर्वत अग्निमान् है ऐसा कहना निगमन कहलाता है । ४८. अन्वय दृष्टान्त-जहाँ साध्य के साथ साधन की व्याप्ति बतलायी जाती है उसे अन्वय दृष्टान्त कहते हैं । जैसे अग्नि के साथ धूम की व्याप्ति बतलाने में महानस अन्वयदृष्टान्त कहलाता है। ४९. अन्वयदृष्टान्ताभास-अन्वयदृष्टान्ताभास के तीन भेद हैंअसिद्धसाध्य, असिद्धसाधन और असिद्धोभय । इनको साध्यविकल, साधनविकल और उभयविकल भी कहते हैं । शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है । जैसे इन्द्रियसुख, परमाणु और घट । ये तीनों दृष्टान्त क्रमशः साध्यविकल, साधनविकल और उभयविकल अन्वयदृष्टान्ताभास ५०. व्यतिरेक दृष्टान्त–जहाँ साध्य के अभाव में साधन का अभाव बतलाया जाता है उसे व्यतिरेक दृष्टान्त कहते हैं । जैसे जहाँ अग्नि नहीं होती है वहाँ धूम भी नहीं होता है । जैसे-जलाशय । यहाँ जलाशय व्यतिरेक दृष्टान्त है। ५१. व्यतिरकेदृष्टान्ताभास-व्यतिरेकदृष्टान्ताभास के भी तीन भेद हैंअसिद्धसाध्यव्यतिरेक, असिद्धसाधनव्यतिरेक और असिद्धोभयव्यतिरेक । शब्द अपौरुषेय है, अमूर्त होने से । जैसे-परमाणु, इन्द्रियसुख और आकाश । ये तीनों दृष्टान्त क्रमशः असिद्धसाध्यव्यतिरेक, असिद्धसाधनव्यतिरेक और असिद्धोभयव्यतिरेक दृष्टान्ताभास हैं । ५२. साध्य–इष्ट, अबाधित और असिद्ध पदार्थ को साध्य कहते हैं । ५३. अविनाभाव-सहभावनियम और क्रमभावनियम को अविनाभाव कहते हैं । अविनाभाव का ही दूसरा नाम व्याप्ति है । ५४. सहभावनियम–सहचारी और व्याप्य-व्यापक पदार्थों में सहभावनियम होता है । जैसे रूप और रस में तथा शिंशपा और वृक्ष में सहभावनियम पाया जाता है। ५५. क्रमभावनियम-पूर्वचर और उत्तरचर में तथा कार्य और कारण में क्रमभावनियम होता है । जैसे कृत्तिकोदय और शकटोदय में तथा धूम और अग्नि में क्रमभावनियम है ।

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