Book Title: Prameykamalmarttand Parishilan
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 316
________________ परिशिष्ट-२ : पारिभाषिक शब्द २६१ २४. ऊह-उपलम्भ ( अन्वय ) और अनुपलम्भ ( व्यतिरेक ) के निमित्त से जो व्याप्ति का ज्ञान होता है उसे ऊह ( तर्क ) कहते हैं । जैसे अग्नि के होने पर धूम होता है और अग्नि के अभाव में धूम नहीं होता है, इस प्रकार के ज्ञान का नाम ऊह है। २५. तर्क-ऊपर नं० २४ में ऊह की जो परिभाषा बतलायी गई है वही तर्क की परिभाषा है । तर्क और ऊह दोनों पर्यायवाची शब्द हैं । धूम और अग्नि में अविनाभाव सम्बन्ध है और तर्क के द्वारा इसी अविनाभाव सम्बन्ध का ज्ञान किया जाता है । २६. तर्काभास-अविनाभाव सम्बन्ध से रहित पदार्थों में अविनाभाव सम्बन्ध का ज्ञान करना तर्काभास है । २७. अनुमान-साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं । जैसे धूम से जो अग्नि का ज्ञान होता है वह अनुमान कहलाता है । २८. स्वार्थानुमान-दूसरे के उपदेश के बिना स्वतः ही साधन से साध्य का जो ज्ञान होता है उसे स्वार्थानुमान कहते हैं । स्वार्थानुमान अपने लिए होता है। .. २९. परार्थानुमान-स्वार्थानुमान के विषयभूत अर्थ का परामर्श करने वाले वचनों से जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसे परार्थानुमान कहते हैं । परार्थानुमान पर के लिए होता है। ३०. अनुमानाभास-व्याप्ति के ग्रहण, स्मरण आदि के बिना अकस्मात् धूम के दर्शन से होनेवाला अग्नि का ज्ञान अनुमानाभास है । ३१. आगम-आप्त के वचनों से होने वाले अर्थज्ञान को आगम कहते हैं । ३२. आगमाभास-राग, द्वेष और मोह से आक्रान्त ( परिव्याप्त ) पुरुषों के वचनों से होने वाले अर्थज्ञान को आगमाभास कहते हैं । ३३. हेतु-साध्य के साथ जिसका अविनाभाव निश्चित होता है उसे हेतु कहते हैं । ३४. हेत्वाभास-जो हेतु के लक्षण से रहित है किन्तु हेतु जैसा मालूम पड़ता है उसे हेत्वाभास कहते हैं । . ३५. असिद्ध हेत्वाभास-जिस हेतु की सत्ता न हो अथवा जिसका निश्चय न हो उसे असिद्ध हेत्वाभास कहते हैं ।

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