Book Title: Prameykamalmarttand Parishilan
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 309
________________ २५४ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन . . मेरे पत्र के उत्तर में श्रीमान् पं० जवाहरलाल जी सिद्धान्तशास्त्री ( भीण्डर ) ने अनक्षरश्रुत के विषय में जो कुछ लिखा है वह इस प्रकार "दिगम्बर आगम में दो प्रकार से अनक्षरश्रुत का लक्षण बतलाया है । प्रथम लक्षण में पर्याय और पर्याय समास-इन दोनों को अनक्षरश्रुत कहा है । यह अनक्षरश्रुत परिणामात्मक तथा क्षयोपशम की अपेक्षा है ।" "दूसरा अनक्षरश्रुत अशब्दलिंगज श्रुत ज्ञान को कहा है। यह अनक्षर श्रुत का अशब्दलिंगज ( अर्थलिंगज ) नाम हेतु की अपेक्षा से है । स्मरणीय है कि पर्याय एवं पर्याय समास नामक अनक्षर श्रुत तो अक्षर के अनन्तवें भाग प्रमाण ही होता है तथा लब्ध्यपर्याप्तक निगोदों में पाया जाता है । शेष किन-किन जीवों में होता है यह आगमानुसार जानना चाहिए । अशब्दलिंगज अनक्षरश्रुत एकेन्द्रियों से पंचेन्द्रियों तक सब में पाया जाता है तथा पर्याय एवं पर्याय समास नामकं अनक्षर श्रुत से विशिष्ट होता है । क्योंकि यह अनुमानज्ञानस्वरूप है । इसी के निम्न विशिष्ट उदाहरण हैं" "जेम्सवाट ने डेगची पर उबलते हुए पानी एवं हिलते हुए ढक्कन से अनुमान ज्ञान द्वारा भाप के इंजन का आविष्कार किया । प्रतिमा, ऋद्धिधारी मुनि आदि के दर्शन से निधत्तनिकाचित कर्म का क्षय होना, विभिन्न पदार्थों आदि के दर्शन से जाति स्मरण होना तथा विशिष्ट महापुरुषों के बिना बोले, मात्र दर्शन से विशिष्ट बोध ( ज्ञान ) की प्राप्ति हो जाना तथा प्रभामण्डल के दर्शन से संख्यात भवों का ज्ञान होना । ये सब अनक्षरश्रुत के उदाहरण मुझे यहाँ ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अनक्षर श्रुत के विषय में पं० जी ने ऊपर जो कुछ लिखा है वह अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान के विषय में है । क्योंकि श्रुत की तरह श्रुतज्ञान भी दो प्रकार का होता है-अक्षरात्मक और अनक्षरात्मक । तब यह प्रश्न बना ही रहता है कि अनक्षरश्रुत क्या है । संभवतः दिव्यध्वनि को अनक्षर श्रुत कहा जा सकता है । यह तो स्पष्ट ही है कि श्रुतज्ञान और श्रुत ( आगम ) में अन्तर है । श्रुतज्ञान चेतन-आत्मा का धर्म या गुण है और शब्दरूप या आगमरूप श्रुत अचेतन है । ८. आगम का उदाहरण यथा मेर्वादयः सन्ति ॥३/१०१॥

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