Book Title: Prameykamalmarttand Parishilan
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 313
________________ २५८ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन चाहिए थे । इस प्रकार ४ सूत्रों की संख्या कम होकर तृतीय परिच्छेद की सूत्र संख्या ९७ रह जाती है । इस बात की पुष्टि आज से २०० वर्ष पूर्व श्री. पं० जयचन्द जी छावड़ा द्वारा लिखित प्रमेयरत्नमाला की हिन्दी भाषा वाचनिका से भी होती है । हिन्दी वचनिका में प्रत्यभिज्ञान के सब उदारहण एक ही सूत्र संख्या ६ में दिये गये हैं । इस प्रकार तृतीय परिच्छेद के १०१ सूत्रों की संख्या ९७ होने में कोई आपत्तिजनक बात नहीं है । संभवत पहले ऐसा ही रहा है । ११. परिच्छेदों में उलटफेर परीक्षामुख तथा प्रमेयकमलमार्तण्ड में परिच्छेदों की संख्या ६ है । फिर भी प्रमेयकमलमार्तण्ड में परिच्छेदों के विषय विभाजन में उलटफेर किया गया है । परीक्षामुख में प्रथम परिच्छेद प्रमाण परिच्छेद है, द्वितीय परिच्छेद प्रत्यक्ष परिच्छेद है, तृतीय परिच्छेद परोक्ष परिच्छेद है, चतुर्थ परिच्छेद विषय परिच्छेद है, पंचम परिच्छेद फल परिच्छेद है और षष्ठ परिच्छेद तदाभास ( प्रमाणाभास आदि) परिच्छेद है । प्रमेयकमलमार्तण्ड में तृतीय परिच्छेद तक तो परीक्षामुख के समान ही परिच्छेदों का विषय विभाजन है । किन्तु प्रमेयकमलमार्तण्ड में चतुर्थ और पंचम परिच्छेदों को एक में मिलाकर चतुर्थ परिच्छेद बनाया गया है । तथा परीक्षामुख के छठवें परिच्छेद को तोड़कर पंचम और षष्ठ ये दो परिच्छेद बनाये गये हैं । पाँचवें परिच्छेद में परीक्षामुख के षष्ठ परिच्छेद के ७३ सूत्रों को सम्मिलित कर तदाभास परिच्छेद नामक पंचम परिच्छेद बनाया है । और परीक्षामुख के षष्ठ परिच्छेद के केवल अन्तिम सूत्र - सम्भवदन्यद्विचारणीयम् । का एक छठवाँ परिच्छेद बनाया है तथा इस परिच्छेद का कोई नाम भी नहीं दिया है । यहाँ यह समझ में नहीं आ रहा है कि केवल एक सूत्र का एक परिच्छेद क्यों बनाया गया है । यदि प्रमेयकमलमार्तण्ड में परीक्षामुख के समान ही परिच्छेदों के विषय का विभाजन रहता तो क्या हानि होती ? यह परिवर्तन किसने किया और क्यों किया यह सब विचारणीय है । प्रमेयरत्नमाला में भी परीक्षामुख के समान ही परिच्छेदों के विषयों का विभाजन है । और मैंने भी यहाँ वैसा ही विषय विभाजन किया है । 1

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