Book Title: Pradyumna Charit Author(s): Sadharu Kavi, Chainsukhdas Nyayatirth Publisher: Kesharlal Bakshi Jaipur View full book textPage 8
________________ प्रस्तावना गुम्न चरित का हमें सर्व प्रथम परिचय देने का श्रेय स्व० रायबहादुर sto हीरालाल को है, जिन्होंने 'सर्च रिपोर्ट' सन १६२३-२४ में इसका उल्लेख किया था। इसके पश्चात् श्री बाबू कामताप्रसाद अलीगंज ( एटा ) द्वारा लिखित "द्दिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास" नामक पुस्तक से इसका परिचय प्राप्त हुआ, किन्तु उन्होंने अपनी उक्त पुस्तक में इसका उल्लेख वीर सेवा मन्दिर देहली के मुखपत्र "अनेकान्त' में प्रकाशित एक सूचना के आधार पर किया था और इस सूचना में इसे गद्य की रचना बतलाया था। इसी पुस्तक के प्राक्कथन में डा० वासुदेवशरण अग्रवाल ने उसे गद्य ग्रन्थ मान कर शीघ्र प्रकाशित करने का अनुरोध किया था। श्री अगरचन्द नाइटा बीकानेर को जब उक्त पुस्तक पढ़ने को मिली तो उसे देखने पर उन्हें पता चला कि 'प्रद्युम्न-चरित' गव्य रचना न होकर पथ रचना है एवं उसका रचना संवत् १४९१ है । इसके बाद नादाजी का जयपुर से प्रकाशित 'वीरवाणी' पत्र के वर्ष १ अङ्क १०-११ (सन् १६.४५ ) में "सं० १६ का लिखित प्रद्युम्न चरित्र क्या गद्य में है ?" नामक लेख प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने प्रन्थ के सम्बन्ध में संक्षिप्त किन्तु वास्तविक परिचय दिया और लेख के अन्त में निम्नलिखित परिणाम निकाला : } "उपर्युक्त पत्रों से स्पष्ट है कि कवि का नाम रायरच्छ नहीं, पर साधारु या सुधारू था। वे अगरोह से उत्पन्न अग्रवाल जाति के शाह महराज ( महाराज नहीं ) एवं गुणवती के पुत्र थे । इनका निवास स्थान सम्भवतः रायरच्छ था । इसे ही सूची कर्ता ने रायरन्छ पढ़ कर इसे प्रन्थकर्ता का नाम बतला दिया है। नगवर सन्त पाठ अशुद्ध है सम्भवतः रव शब्द को आगे पीछे लिख दिया है। शुद्ध पाठ नगर बसन्त होना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण सूचना प्रति से रचना काल की मिली है। अभी तक सम्वत् १४११ की इतनी स्पष्ट रचना ज्ञात नहीं है इस हर्षो से इसका बड़ा महत्व है ।" इसके पश्चात् प्रद्युम्न चरित के महत्व को प्रकाश में लाने अथवा उसके प्रकाशन पर किसी का ध्यान नहीं गया। इधर हमारा राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की प्रन्थ सूचियां तैयार करने का पुनीत कार्य चल ही रहा था ।Page Navigation
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