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अध्यक्ष में धूमधाम पूर्वक इन्दौर में दीक्षा हई और नाम सुमनश्रीजी रखा गया आप साहेबजी कि चौथी शिष्या योग बड़ी दीक्षा नूतन साध्वी को करवा कर गुरुदेव की आज्ञा प्रमाणे गुजरात कि ओर विहार किया । परन्तु बांसवाडे के संघ का चौमासे का अति ग्रह होने से १६६८ का चौमासा बाँसवाडे में किया वहां अजान पर्गदा होने से सद् उपदेश द्वारा वीतराग देव का धर्म की प्राप्ती करवाई फिर चौमासा पूर्ण होने पर केशरियाजी तीर्थ कि यात्रा करते हुये अहमदाबाद पधारे सं० १९९९ का चौमासा गुरुदेव की निश्रा में किया । चौमासा पूर्ण होने पर गिरी - राज कि तरफ बिहार किया कारण कि परम पूज्य श्रागमोद्धारक आचार्य देवेश श्री श्रागम मन्दिर कि प्रतिष्ठा कराने वाले हैं । इस शुभ अवसर पर पालीताना पधारे वहां इन्दौर से सेठानी सुन्दरबाई देपालपुर से चम्पाबाई देवास से अमृतबाई वैरागी आत्मा प्रतिष्ठा में आये और परम पूज्य श्रामोद्धारक की निश्रा में इन तीनों बहिनों कि दीक्षा हुई
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नुक्रमे नाम सुबोधोजी, चतुरश्रीजी इन्दुश्रीजी दिये । बड़ी दीक्षा योग गिरीराज में हये आप साहेबजी कि सात शिष्या हुये । प्रतिष्ठा आदि आनंद पूर्वक करके गुरुदेव अहमदा बाद थे साहेबजी उनकी निश्रा में आये सं० २००० का चौमासा वह पर हुआ । चौमासा पीछे गुरुम. की आज्ञा