Book Title: Prabhanjan Charitra Author(s): Ghanshyamdas Jain Publisher: Mulchand Jain View full book textPage 5
________________ alste भूमिका | प्रभंजन चरित है तो छोटासा ग्रन्थ पर रोचक और शिक्षाप्रद बहुत है । इससे वैराग्यकी शिक्षा मिलती है। स्त्रियोंके गुप्त रहस्यका पार्ट मालूम होता है । पुण्य और पापका फल ज्ञात होता है । पिता पुत्रका स्नेह जाना जाता है । पूर्वभवमें किए हुए वैरका फल मालूम होता है । व्रतका महत्व जाना जाता है । यह ग्रन्थ कोई स्वतंत्र ग्रन्थ नहीं है किन्तु यशोधर चरितकी पीठिका - मेंसे है । यशोधर-चरित किसका रचा हुआ है यह बात हमें कहींसे मालूम नही हुई । पर इतना मालूम हुआ है कि यह ग्रन्थ प्रभंजन मुनिके किसी शिष्यने बनाया है। क्योंकि इस ग्रन्थके मंगलाचरणमें “प्रभंजनगुरोश्चरितं वक्ष्ये" ऐसी प्रतिज्ञा पाई जाती है । प्रभंजन मुनिके गुरुका नाम श्रीवर्द्धन था । यदि श्रीवर्द्धन, जय, मेरु, पाल आदि इस ग्रन्थमें जिनर मुनियोंका उल्लेख किया गया है उनमें से किसी भी एक मुनिके रचे हुए किसी एक ग्रन्थका 'पता लग जाय, तो आशा है कि इस ग्रन्थके रचयिता और उनके समयका भी पता लग जायगा । आज कल लोगोंकी रुचि जितनी कथाग्रन्थ पढ़नेकी तरफ है उतनी और २ विषयके ग्रन्थोंकेPage Navigation
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