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दूसरा सर्ग।
[ १३ दे दी। सोमश्री और वह जार दोनों गर्गके घर ठहर गये । सोमश्रीने यहाँ भी यक्षके मठकी तरह ही दुर्विलास कर इस स्थानको भी उसी तरह रम्य कर दिखाया। इतनेमें सोमश्रीका पुत्र रोया और गर्गकी ओर उसके स्तन पीनेके लिये सटपटाया-झपटा। तब सोमश्रीने अपने जारसे कहा-तुम किसी तरह पुत्रको माँगकर मेरे पास ले आओ। जारने गर्गसे पूछा-विप्रराज ! पुत्र क्यों रोता है ? गर्गने उत्तरमें कहाइसकी माता नृत्य देखनेको गई है। इस कारण यह भूखा-प्यासा हो रो रहा है। विटने कहा-यदि ऐसा है तो आप बच्चेको मुझे देवें । मैं अपनी स्त्रीका दूध पिलाकर अभी वापिस लिये आता हूँ। मेरी स्त्रीका बच्चा अभी कुछ समय हुआ जब मर गया था अतएव उसके स्तनोंसे दूध निकलता है। अनजान गर्गने पथिकके हाथमें बच्चको दे दिया । पथिक भी बच्चेको दूध पिलाकर वापिस लौटा गया । इस प्रकार करते २ उस दुष्टा सोमश्रीने जारके साथ दुर्विलास करते हुए रात पूरी कर दी। वह सबेरा होते ही उठी और घरसे बाहर कुछ दूर जाकर वापिस आगई और पतिदेवको क्रुद्ध हुआ देख उनके पैरोंपर गिरकर बोली-स्वामिन् ! आप क्रोध मत करो, मुझे हठ करके सखीने ज़बरदस्ती ठहरा लिया था। मैंने सुना है-अपने घर आज रातको कोई पथिक ठहरा था; उसकी स्त्रीके दूधको पी-पीकर बालक खूब सन्तुष्ट रहा है। यह बात सच्ची है या झूठी है ? गर्गने कहा-यह तो सत्य है । गर्गका ऐसा उत्तर सुन सोमश्री सन्तुष्ट हुईसी बैठ गई। सच है--वंचक (ठग) लोग दूसरेके दुःख बिल्कुल नहीं जानते हैं। इस दुष्टा उपाध्यायीके ऐसे स्वभावको जानकर रातमें शिष्यके बहुत विरक्त भाव हो गये। वह आश्चर्यके साथ सोचने लगा