________________
३० ]
प्रभंजन-चरित । शरीरमें विष चढ़ गया । तब शरीर थर २ काँपने लगा । वह तन्वी जड़से उखाड़ दी गई, बेलके समान भूतलपर गिर पड़ी। सूरज अस्ताचलपर जा ही रहा था कि उसी समय मंगिकाको ले जाकर वज्रोदरी स्मशानभूमिमें वहाँपर रख आई जहाँपर एक यतीश्वर ध्यान लगाये हुए बैठे थे। इतनेमें वज्रायुध वनसे घर आया और अपनी प्रियाको न देखकर मातासे पूछने लगा । माताने कहा कि तुम्हारी वल्लभा मर गई है । यदि तुम्हें उससे कुछ कार्य हो तो जाओ वह स्मशानभूमिमें है । माताके मुखसे अपनी प्राणवल्लभाको मर गई जानकर वज्रमुष्टिको इतना भारी दुःख हुआ मानों उसे वज्रका ही घाव हो गया हो । वह सोचने लगा कि यदि मेरी प्रिया मर गई है तो मैं भी उसीके साथ मर जाऊँगा, और यदि वह जीती है तो मैं भी जीता रहूँगा; मेरी यही प्रतिज्ञा है। इस प्रकार दु:खी हो हाथमें तलवार लेकर घरसे निकल स्मशानभूमिमें गया । जहाँ उसकी प्राणवल्लभा. थी वहाँ उसने मानों साक्षात् धर्मध्यान ही बैठा है ऐसे नासाके अग्रभागपर दृष्टि लगाए बैठे हुए सर्वोषध नामक मुनिको तथा अपनी वल्लभा मंगिकाको भी देखा । मुनिको देखते ही वह विचारने लगा कि यदि मेरी वल्लभा जीवित हो जायगी तो मैं कमलोंकेद्वारा इन मुनिके चरण-कमलोंकी पूजा करूँगा । इस प्रकार विचार करता २ वह · मंगिकाको मुनि महाराजके चरणोंके समीपमें ले आया। मुनिराजके समीपकी वायुके स्पर्शमात्रसे ही मंगिका सहसा विष-विकारसे रहित हो गई। तब वह अपनी प्यारीको तो उन मुनि महाराजके चरणकमलोंके समीपमें छोड़ गया और आप हर्षित होता हुआ शतपत्र कमल