Book Title: Prabhanjan Charitra
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Mulchand Jain

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ ३२ ] प्रमंजन चरित । भ्रातः ! इसका कारण क्या है ? उसने स्मशानभूमिका सारा वृत्त कह सुनाया । तब वे सब भी वैराग्य भावको प्राप्त हुए और दीक्षा लेकर तप करने लग गये। किसी दूसरे दिन वे सभी धीरवीर चर्यामार्गके अनुसार आहार लेनेको निकले और क्रम २ से अन्य २ घरोंको छोड़ते हुए वे जब मंगिकाके घरके नज़दीक पहुँचे, तब मंगिकाके पति वज्रायुधने उन्हें पड़गाहा । जब वज्रायुधने उनसे उनके तपका कारण पूछा तब उन मुनिजनोंने आहारके बाद स्मशानभूमिका सारा हाल कह सुनाया। वज्रायुधने जब वह हाल सुना तब वे विरक्त हो गये और दीक्षा लेकर तप करने लगे। इस प्रकार वज्रायुधका कथानक पूरा हुआ। हे राजन् ! नंद मुनिके तपका हेतु यशोधर महाराजका चरित है। यह सचेता पुरुषोंके चित्तको चुरानेमें समर्थ है-यह सज्जन . पुरुषोंके चित्तको अपनी तरफ खींच सकता है। हे आर्य! तुमने इन आठ मुनियोंके, जो जगत द्वारा स्तूयमान हैं, व्रती हैं, चरित और नामोंको पूछा था उन सबका मैं व्याख्यान कर चुका । धर्म एवं मुनिधर्म संसारसे भयभीत कराकर वैराग्यको बढ़ानेवाला है; इस लिए कुशाग्रबुद्धि बुद्धिमानोंको उसका अवश्य श्रवण करना चाहिए और उसके अनुसार यथाशक्ति चलनेमें भी प्रयत्न रहना चाहिए । इस प्रकार प्रभंजन गुरुके चरितमें यशोधर चरितकी पीठिकाकी रचनामें चतुर्थ सर्ग पूरा हुआ। -

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118