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प्रभंजन-चरित । को पधारें । मैं प्रातःकाल इस बातका जो इलाज करूँगी, वह सब मेरी क्रियाहीसे आप लोगोंके आगे आ जायगा वचनों द्वारा कहना निष्फल है। इसके बाद पिता आदिक सब लोग तो सुलक्षणाके वचनोंसे दुःखी होते हुए उसके गुणोंका स्मरण करते २ अपने २ घरोंको चले आये , उधर सुलक्षणाकी माताने उसकी अवस्था जाननेकी इच्छासे इंदुवापिका नामकी दूतीको उसके पास भेजा। दूती गई
और सुलक्षणाके घर पहुँची । वहाँ सुलक्षणाने उसे शराब पिलाकर मतवाला कर दिया और जब वह बिल्कुल वेहोश हो गई तब उसे अपने पलंगपर लिटा दिया तथा अपने आप बहुतसे रत्नोंको इकट्टा करके जब बाँध-बूंध लिया तब घरमें आग लगा दी और वह तन्वी स्वयं श्रीधरके साथ दशपुर नगरको चली गई । बांधवोंने जब देखा कि सुताने अपने नामके पीछे अपने घरको भी जला डाला है, तब वे आकुलित होते हुए बहुत रोने चिल्लाने लगे और उसके गुणोंका बार २ स्मरण करने लगे। बांधवोंने सुलक्षणाको उद्देश्य करके उसके मरणकी सब क्रियाएँ की--उसे जलांजलि दी। बादमें अपने २ घर आकर उसे भूलभाल गये और सुखसे रहने लगे। जब राजा लोगोंने उसके सारे वृत्तान्तको सुना तब वे भी आश्चर्यके समुद्रमें गोते खाने लगे और उसे साधुवाद देने लगे। वे दोनों दशपुर नगरमें पहुँच गये और वहाँ रतिक्रीड़ा करते हुए सुखसागरमें निमग्न होकर रहने लगे। वहाँ बहुत काल पश्चात् उनके कई एक बालबच्चे पैदा हुए। धीरे २ जब सब धन पूरा हो गया तब वह सुलक्षणा पति-पुत्र दोनोंहीको साथ लेकर फिर अपने पिताके घरको आई और वहाँ सुखसे रहने लगी। हे राजेन्द्र ! सोमश्री (गर्गकी स्त्री) के इन