Book Title: Pirdan Lalas Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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पलाणि (60)-घोडे पर जोणकर । | पहुवी (३२)-पृथ्वी । पला (१०, १०३ )—वस्त्र, छोर, | पाडव (६६, ६६)-पाडु, पुत्र, अर्जुन अांचल ।
भीमादि । पळिया (२१)-पालन पोपण किया। पांति (५, ६४)-विभाग, हिस्सा। फ्वग (६५, ६०)-घोडा। पातिग (३६)-पातक, पाप । पवन (३७)-वायु ।
पाई (६७)-प्राप्त की। पवाडा (१६)-महान कार्य, प्रवाडा पाउ (२४, ५४, ७७, १०१)-~पाद, पवार्ड (८१)-प्रवाडा।
चरण । पविगि (८४)-घोडा।
पाछा (६२) वापिस । पसाउ (७४)-प्रसाद कृपा । पाज (६, ५७, ६६)-सेतु, पुल । पसारं (६६)-फैला दिए । पाजा (९२)-सेतु, मर्यादा । पहचि (३८,४६, ५०)-शक्ति, पहुंच | पाट (६, ३३)---सिंहासन । पहची (७७)-पहुँच, शक्ति । पाटि (८८,-सिंहासन । पहप (६५)-पुप्प, फूल। पाडळ (५, ६२)-पाटल वृक्ष, पाढर पहर (३४)-प्रहर।
या पाटल का वृक्ष जिसके पहलाद (६८, ९४, प्रहलाद ।
पत्ते वेल के समान होते हैं। पहवि (६७)---पृथ्वी।
पाडि (५९)-गिराकर, मारकर । पहार (३६, ७४ म० प्रहार)-मिटाना | पाडीया (६१)-गिरा दिए । प्रहार, ध्वस।
पाढां (२८)-पहाडो से ? पळाविज (१०३) - पालन किया जाय, | पातिक पहार (३६, स० प्रहार)__ पाला जाय, पालन कर सकें।
पातक या पापो का नाश पहिराडमी (११)-पहिनायोगे ।
करने वाला। पहिलई (८१)-प्रथम ।
पातिग (२२, ३३, ७०, ७३, ७४, पहिलाद (५३, ६८, ६६, २८, ६, २, ७८, ७६, ८८, ८९)-पाप,
२४, ५३, ६६, ७०, ७२, पातक।
६६, ८०)-भक्त प्रह्लाद। पातिगनां (१००)-पावक । पहिळादा (३३)-प्रलाद । पातिगि ।७१, ७६, १०१)-पातक, पहिल (७४, ६०}-प्रथम ।
पाप ।

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