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वखारिणयौ (१३)-वर्णन किया । | वणाव (७२)-रचना, वनावट। . वखवाणी (२३)-देवी। वणावा (३८) रचे, वनाये । वडी (३४)-वडा, महान । वरणाव (४२) रचता है। वछां (७)-वछडा, पशु । | वरणावी (३१)—वनाइए। वछासुर (५६)-कंस का अनुचर एक वदत (३६)-कहते हैं।
राक्षस जिमे श्रीकृष्ण ने | वदै (२३)-कहते हैं। वाल्यावस्था मे ही मारा | वचंती (४७)-विशेष
था, वत्सासुर। वधती (४७)-विशेष वजाडी (५९)-वजाई, ध्वनित की। वाया (१३, ६३)-स्वागत किया । वड (६८, ७०)-वडा, महान । ववाय (६७)- स्वागत किया। वडवर्ड (८५)-वडे, महान । वधायी (२६, ३२) स्वागत किया वडवडौ (९१)—महान, अत्यत वडा। वघियौ (६४, ८८) वढा, वृद्धि, प्राप्त वडवा (२४)
हुआ। वडा (३३, ३७, १६)-महान, वडा। वनमाळी (१)-तुलसी, कुंद, मदार वडाया (७३)—बडाई, महानता, यश
पर जाता और कमल इन वडाळ (३६)-बडा, महान .
पांचो की बनी हुई माला वडि (५१)—वट वृक्ष पर
को धारण करने वाला, वडिमि (१५, ८०)-वडप्न, महानता
श्रीकृष्ण, विष्णु, नारायण।
वप (२५)-गरीर वडियो (६५)-काटा गया, कट गया वढेरा (३७, १०१)—पूर्वज, पुरखा,
| वप ( २१, २४, ७२, ६५ )-वपु, वडा महान ।
शरीर। वडेरी (२३)-वडी, महान ।
वपु (५१)-शरीर वडेरो (२१)-वडी, महानत ।
वमीपण (३, ६६)-रावण का भाई । वडो (२३)-महान, वडा ।
वयण (१)-वचन, वाणी। वडी (४५, ५२, ५३)–वडा महान, वरण (२१)—वर्णन करता है । दोर्घकाय ।
वरत (१०२)-पुण्य प्राप्ति के उद्देश्य वरणराय (५१)-बनराजि, वन, जंगल
से किया जाने वाला किसी वणायी (२७)-रचा
पुण्य तिथि का उपवास ।