Book Title: Pirdan Lalas Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 238
________________ [८६ ] सालोक (४४)-पाच प्रकार की सिको (४६)-सव मुक्तियो मे से एक जिसमे सिखि (७७)-शिष्य मुक्ता भगवान के साथ / सिंगला (२, ४६, ६०, ७८, ४७, ७६, एक ही लोक मे वास १०१)-सकल, सब, करता है सालोक्य । सावतरी (४४) सावित्री सिगळा (१३, ५१, ७५)-सकल, सव सावतरी (१३, २०, ३६) वेदमाता सिगळाई (१६, ६६, १०२)~-सकल, सव। गायत्री, सावित्री। सिगळो (६७)--सव सावित्री (३२, ६७)--१. सरस्वती, सिगि (१०)-सव, समग्न । २ सूर्य की प्रश्नि नामक सिघाळा (88)वडा, महान योद्धा। पत्नी से उत्पन्न ब्रह्मा की सिघारिस (६६)-संसार करेगा । पत्नी ३ वेदमाता गायत्री। सिरिणगारिज (१६)-शृङ्गारयुक्त सास (२७)--श्वास कीजिये। सास (३४,४६, ५०, ६६)-श्वास, सिद्धदायक (३४)---सिद्धि को दन प्राण । वाला। सास-सासि (९६, ३४)~ श्वास-प्रति- सिध (६)-सफल श्वास । सिनकादिक (४४)-सनकादिक । साहनिजार (१०१, १२ -एक महात्मा सिनिकादिखि (६१/-शनकादिक का नाम । - ऋषि । शाहिवा (१००)-स्वामी, ईश्वर। सिर (५३)-ऊपर, पर। साहुलि (8) प्रार्थना, आर्तनाद । सिरताज (३५, ६८)-श्रेष्ठ साहु (३०)-प्रकार सिरि (१६, ५०)-शिर, ऊपर पर । साही (३२)-विवाह, लग्न । सिरिज (१०)-रचना करता है । सिंघ (७०)-सिंह सिरै (३२, ४७)-श्रेष्ठ, ऊपर, पर। सिंघार (५, ६३)~-सहार सिरो (४६)-ढग, प्रथा । सिनेह (४५/- स्नेह सिव (६८)-शिव, महादेव । सिंभू (६०)-~शमू, शिव। सिवि (७६, ८८)-शिव, राजाशिवि। सिंही (४४, ४८)-सही, अवश्य । सिवि संकर (७६)-शिवशकर।

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