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बळिराउ (६६)-राजा बलि । वामणी ( )-ब्राह्मणी बलिराम (५७, ८२ )-बलराम | वाह (५)-भुजा, हाथ ।
श्रीकृष्ण का वडा भाई। वाहां (४१)-बाहु बळिराम (८५)-वलदेव, वलभद्र।। | बाई (९७)-वदन वळिहारी (१०१)-वलैया
वाकळा (५८)-उवाला हुआ, अक्षत बळे (७८)-बल गये, भस्म हो गये।
अन्न। वसदे (२)-वसुदेव
वाज (१०१) वसदेव (५८)-वसुदेव
वाणासुर (५)-राजा बलि के सौ पुत्रो वसास (५०)-विश्वास
मे से सवसे वडा पुत्र वह (१३, ३८, ४६, ४४, ६२, ६६,
जो महान वीर, गुणी ८५, ८६)-बहुत
और सहस्रवाहु था। वहत (१४, ४७, ५२, ५३, ५८, ६५, | वाथा (६१) बाहुपाश । __८६, ८५)-बहुत
वाधा (९७)-बंधन मे । वहनामी (१४, ५६, ६०, ६३, ६७, | वावि (९६) -विशेष
१००, ६५, १०१)-जिसके | वाप (२५)-पिता
बहुत से नाम हो, ईश्वर । (१०१)—यहां बाप शब्द पाश्चवहनामी (६१, ६५, ४८, ७६, ६४)
र्ययुक्त धन्यवाद शब्द के देखें, वहनामी।
अर्थ मे है। बहमामि (३६) बहुत-सो का स्वामी
| वापडा (२०)-वपुरा वहादरि (८६)—वहादुर, वीर, वीरता
बामण (३०)-ब्राह्मण, (यहा सुदामा वाझणिया (११)-बध्यारो, वाझो ।
के लिए आया है। वाणासुर (६३)-राजा बलि के ज्येष्ठ | वायर (५२)-स्त्री, ( यहा मोहनी पुत्र का नाम जो वडा वीर,
अवतार के लिए प्रयोग गुणी और सहस्रबाहु था।
किया गया है) वाध (५७)---रची, रचकर, वनाकर ।
वारट (१७) चारणो की उपाधि । बाघौ (३२)-धारण करना वारा (३३)—वारह वामण (१६, ३६) ब्राह्मण, वामना- | वारिस १०२)द्वादशी वतार ।
वाळ (२०, ४७)—वालक