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________________ [ ५७ ] बळिराउ (६६)-राजा बलि । वामणी ( )-ब्राह्मणी बलिराम (५७, ८२ )-बलराम | वाह (५)-भुजा, हाथ । श्रीकृष्ण का वडा भाई। वाहां (४१)-बाहु बळिराम (८५)-वलदेव, वलभद्र।। | बाई (९७)-वदन वळिहारी (१०१)-वलैया वाकळा (५८)-उवाला हुआ, अक्षत बळे (७८)-बल गये, भस्म हो गये। अन्न। वसदे (२)-वसुदेव वाज (१०१) वसदेव (५८)-वसुदेव वाणासुर (५)-राजा बलि के सौ पुत्रो वसास (५०)-विश्वास मे से सवसे वडा पुत्र वह (१३, ३८, ४६, ४४, ६२, ६६, जो महान वीर, गुणी ८५, ८६)-बहुत और सहस्रवाहु था। वहत (१४, ४७, ५२, ५३, ५८, ६५, | वाथा (६१) बाहुपाश । __८६, ८५)-बहुत वाधा (९७)-बंधन मे । वहनामी (१४, ५६, ६०, ६३, ६७, | वावि (९६) -विशेष १००, ६५, १०१)-जिसके | वाप (२५)-पिता बहुत से नाम हो, ईश्वर । (१०१)—यहां बाप शब्द पाश्चवहनामी (६१, ६५, ४८, ७६, ६४) र्ययुक्त धन्यवाद शब्द के देखें, वहनामी। अर्थ मे है। बहमामि (३६) बहुत-सो का स्वामी | वापडा (२०)-वपुरा वहादरि (८६)—वहादुर, वीर, वीरता बामण (३०)-ब्राह्मण, (यहा सुदामा वाझणिया (११)-बध्यारो, वाझो । के लिए आया है। वाणासुर (६३)-राजा बलि के ज्येष्ठ | वायर (५२)-स्त्री, ( यहा मोहनी पुत्र का नाम जो वडा वीर, अवतार के लिए प्रयोग गुणी और सहस्रबाहु था। किया गया है) वाध (५७)---रची, रचकर, वनाकर । वारट (१७) चारणो की उपाधि । बाघौ (३२)-धारण करना वारा (३३)—वारह वामण (१६, ३६) ब्राह्मण, वामना- | वारिस १०२)द्वादशी वतार । वाळ (२०, ४७)—वालक
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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