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( ८ ) आप पंखा करने लगी। उस समय अनिकाका अलौकिक सौन्दर्य देखकर देवदत्तका मन इस प्रकार विवश हुआ, कि भोजनका स्वाद भी कुछ मालूप नहीं हुआ; किन्तु मित्रतामें किसी प्रकारका फ़र्क न आ जाये, इसलिये वह अपने मनोगत भावको छिपाकर स्थिरतासे जीमता रहा। भोजन कर लेनेके बाद जय सिंहसे रुखसद पाकर देवदत्त अपने मकानपर चला गया, परन्तु उसका मन मयूर वहीं नृत्य करता रहा ।
दूसरे दिन देवदत्तने अपने एक वृद्ध नौकरको जयसिंहके पास अन्निकाके साथ विवाह सम्बन्धका प्रस्ताव करनेको भेजा। उस समय वृद्ध नौकरने वहाँ जाकर बड़े नम्र तथा गम्भीर बचनोंसे अन्निकाका विवाह देवदत्त के साथ करनेके लिये जयसिंह से कहा। जयसिंह उसकी बात सुनकर बड़े प्रसन्न हुए
और बोले,-"देवदत्तको मैं अच्छी तरह जानता हूँ। वह सर्व कलाओं का जानने वाला रूप-गुण-सम्पन्न और कुलीन व्यक्ति है। ऐसा वर मिलना बडे ही सौभाग्यकी बात है, किन्तु दुःख यही है, कि वह परदेशी है और मेरी बहिन मुझे प्राणोंसे भी अधिक यारी है। उसका क्षणभर के लिये भी अलग होना मेरे लिये असह्य है। देवदत्त के साथ विवाह करदेनेपर मुझे वाध्य होकर देवदत्त के साथ उसे भेज देना पड़ेगा; यह मुझसे नहीं हो सकता। अतएव यदि देवदत्त सदाके लिये मेरे घर रहना मंजूर करें, तो मैं खुशीसे उनके साथ अपनी बहिनका विवाह कर दे सकता हूँ। नौकरके द्वारा देवदत्तको यह बात मालूम हुई। उसने