Book Title: Patliputra Ka Itihas
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Shree Sangh Patna

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Page 42
________________ ( २६ ) यह वात एक दासीके द्वारा वर रुविको मालूम होगयी। वस फिर क्या था ? उसने झट एक श्लोक बना कर शहरके कितनेही लड़कोंको याद करादिया। वह श्लोक इस प्रकारथा “नवेत्ति राजा यह सो शकडालः करिष्यति । व्यापाद्य नन्द तद्रोज्य श्रीयक स्थापयिष्यति।" अर्थात्-जो शकडाल करने वाला है, सो राजा नहीं जानता। नन्दको मारकर उसके राज्यपर अपने पुत्र श्रीयक को स्थापित करेगा। नगरके लड़कोंने यह बात सारे शहरमें फैला दी। परम्परासे राजाके कानतक भी जा पहुंची। इस बातके सुननेसे राजाके मनमें सन्देह हो गया और उन्होंने पता लगाने के लिये मन्त्रीके घर पर अपने नौकरों को भेजा। नौकरोंने शकडालके घर जाकर शस्त्रों को बनाते देखा और जो कुछ देखा, सो वैसेही राजासे कह दिया। यह सुनकर राजाका मन मन्त्रीकी ओरसे एकदम फिर गया। राज सभामें मन्त्रोके आनेपर राजा ने मारे कोपके उसके साथ बातें करनी तो दूर, उसकी ओर देखा तक नहीं। मन्त्री बड़ा बुद्धिमान था। वह झट समझ गया कि आज जरूर किसोने राजासे मेरी चुगली खायी है, इसी से गजा कुपित हुआ है। राजाको प्रतिकूल देखकर शकडाल शीघ्र ही घर चला आया और अपने पुत्र श्रीयकसे कहा-"किसी दुश्मनने राजाका मन मेरी तरफसे फेर दिया है। अतएव यहि

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