________________
( ३६ ) यश को मुझे दे देनेकी प्रतिज्ञा करो ।” उस कन्या के पिताने लड़की की जीवन-रक्षा विचारले वैसाही करना स्वीकार किया । चाणक्यने बड़ी खूबी और युक्तिके साथ चन्द्रमाके बिम्बसे प्रतिबिम्बित एक थाली दूध उस लड़कीको पिला दिया। यह - काम इस खूबी से किया गया, कि उस लड़कीको पूरा विश्वास हो गया, कि मैंने चन्द्रमाको पी लिया । इच्छा पूर्ण हो जानेपर यथा समय उस कन्याके गर्भसे चन्द्रमाके समान सौम्य और -सूर्यक समान तेजस्वी पुत्रका जन्म हुआ । चन्द्रमाको पान करनेकी अभिलाषा करने वाली मातासे जन्म ग्रहण करनेके कारण माता-पिताने उस बालकका नाम चन्द्रगुप्त रखा। चंद्रगुप्त दिन-दिन चन्द्रकलाके समान ही बढ़ने लगा और कुछ ही दिनमें बड़ा हो गया । अपने पड़ौसके लड़कोंके साथ वह गांव के चाहर चला जाता और अनेक तरह की क्रीड़ा करता था। उसके खेल अन्य लड़कोंके समान नहीं होते थे। वह किसीको हाथी, किसीको घोड़ा, किसीको सैनिक और किसीको सेनापति - बनाता और आप राजानकर शासन करता था । एक दिन संयोगवश चाणक्य अचानक वहीं चले आये और चन्द्रगुप्त की -५सी चेष्टाएँ देखकर बड़े आश्चर्य में पड़ गये और लड़कोंसे पूछा, कि "यह लड़का किसका है ।”
लड़कोंने कहा, – “यह एक परिव्राजकका पुत्र है; क्योंकि जब यह गर्भ में था, तभी इसके माता-पिता तथा नानाने इसे एक परिब्राजक.को देने की (प्रतिज्ञाकर की है।"