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( ३७ ) - लड़कोंकी बातें सुनते ही चाणक्य समझ गया, कि यह तो वही बालक है, जिस गर्भवती माताकी इच्छा मैंने पूर्ण की थी। चाणक्यने उस लड़केको पास बुलाकर कहा,-"तेरे मातापिताने मुझे समर्पण किया है, वह परिव्राजक मैं ही हूं। आ, तू मेरे साथ चल। यह राजाओं की नकल क्या करता है। चल, मैं तुझे सच्चा राज्य देकर राजा बनाऊँ। . अन्य लोगोंके मतसे चन्द्रगुप्त मुरा नामकी दासीके गर्मसे उत्पन्न राजा नन्दका ही पुत्र था। इसीसे मौर्यके नामसे भी चन्द्रगुप्त प्रसिद्ध है। जब चाणक्य राजा नन्दकी सभासे अपमानित होकर चला, तब उसने नन्द वंशका(मुलोछेद) जड़से उखाड़नेको प्रतिज्ञाके साथ साथ यह भी कहा कि जो कोई इस समय इस सभासे उठकर मेरे साथ चलेगा, उसीको मैं पाटलिपुत्रके राज्या. सनपर प्रतिष्ठित करूंगा। यह सुनकर चन्द्रगुप्तने, जो उसी सभामें बैठा था, सोचा कि मैं किसी प्रकार राज्यका अधिकारी तो नहीं हूं, पर कदाचित इस ब्राह्मणके द्वारा राज्य पा जाऊ इस प्रकार विचार कर वह उठ खड़ा हुआ और सबके देखतेदेखते चाणक्य के साथ हो लिया। चाणक्य चन्द्रगुप्तको अपने साथ लेकर पाटलिपुत्रसे बिदा हुआ और कुछ ही दिनों में उसने अपनी विद्वता एवं नीति निपुणताके द्वारा कई राजा
ओंको मिला लिया। उनको मिलाकर उसने पाटलिपुत्रपर चढ़ाई करा दी और राजा नन्दकोस परिवार, स सैन्य नष्ट-भ्रष्ट कराके चन्द्रगुप्तकों पाटलिपुत्रका राजा बना दिया। च द्रगुप्त