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उपर्युक्त उपाख्यानोंसे स्पष्ट है, कि पाटलिपुत्र बहुत ही प्राचीन और जैन धर्मका केन्द्र है। यदि कहा जाये कि पाटलिपुत्र जैन धर्मके विशेष विकाशके लिये ही स्थापित हुआ था, तो कोई मत्युक्ति न होगी। पाटलिपुत्र ही एक स्थान है, जहां परम प्रतापी जैन धर्मावलम्बी उदायीसे सम्प्रति पर्यन्त राजाओंका शासन पीढ़ीदर पीढ़ीतक अविच्छिन्न कायम रहा। और स्थूलभद्रजीके समान सर्वक्ष एवं सेठ सुदर्शनके समान केवल ज्ञान और महापुरुषोंका जन्मस्थान तथाज्ञान-विकाशका एकमात्र पाटलिपुत्र ही है।
राजा अशोकके समयमें सर्वसे प्रथम ग्रीसका राजदूत मेगास्थनीज़ पाटलिपुत्रमें आया था। उसके बाद विदेशियों का आवागमन प्रारम्भ हो गया। तदनन्तर चन्द्रगुप्तके समय बहुत विशेष बढ़ गया। महम्मद गौरीके भागमनके पूर्व और सम्प्रति राजाके पश्चात् और भी कितने हो हिन्दू राजाओंने पाटलिपुत्रका शासन किया था किन्तु पीछे पाटलिपुत्रमें मुसलमान बादशाहोंका अधिकार हो गया। मुसलमान बादशाहोंमें शेरशाहने पाटलिपुत्रकों 'पटने के नामसे बदल दिया, जो आजतक पटनेके ही नामसे प्रसिद्ध है। __पटनेका अन्तिम मुसलमान शासक नवाब मीरकासिम था। उसने सन् १७६३ ई० में अङ्ग्रेजोंके साथ युद्ध किया। युद्धमें अगरेजोंकी बिजय हुई और सर्वसे प्रथम पटनेका अधिकार एलिस साहबके हाथ गला। पीछे क्रमशः इस्ट इण्डिया कम्पनी