Book Title: Patliputra Ka Itihas
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Shree Sangh Patna

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Page 52
________________ ( ३ह ) समय भद्रबाहुजी महाराजने महाप्राण नामक ध्यानको मायनों आरम्भ की हुई थी । अतपक्ष उन्होने साधुओंसे कहा, कि इस समय मैं पाटलिपुत्र नहीं जा सकता, किन्तु यदि कुछ बुद्धिमान साधु यहां आयें, तो किसी प्रकार मैं कुछ समय निकालकर प्रतिदिन सात बाचनाएं दे दिया करूँगा साधुओंने आकर संघले यह बात कही और संघने इसे स्वीकार करके स्थूल भद्रादि पांच बुद्धिमान साधुओं द्वष्टिबाद पढ़नेके लिये श्रीभद्रबाहुजी आचार्य के पास भेजा । आचार्य महाराज सबको पढ़ाने लगे । थोड़ी बांचना मिलनेके कारण साधुओंकामन त जमा । अतएव कुछ कालबाद स्थूलभद्रजीके सिवाय सब साधु लौट आये। अब आचार्य महाराजका सब समय अकेला श्रीस्थूलभद्रजीको ही मिलने लगा । ये महा प्रज्ञावान् भी थे। अतएव शीघ्र ही चतुर्दश पूर्वघर हो गये । भगवान् श्रोमहावीर स्वामीके मोक्ष हो गये बाद सौ सत्तर वर्ष व्यतीत होनेपर श्रीभद्रबाहु स्वामीने भाचार्य पदपर श्रीस्थूलभद्रजीको विभूषित किया और उन्हें अपने पदपर नष्ट करके स्वर्ग सिधार गये। आचार्य श्रीस्थूलभद्रजीके दो शिष्य थे, जिनमें बडेका नाम भार्यमहागिरि और छोटेका नाम आर्यसुहस्ती था । ये दोनों ही वडे पवित्र चारित्र वाले भवभीरु और धर्म रक्षक थे। प्रज्ञावान् होनेसे थोड़े ही समय में उन दोनोंने गुरु महाराजसे दशपूर्वकी विद्या पढ़ ली । एक दिन अपनी आयुको पूर्ण हुआ समझकर महात्मा श्रीस्थूलभद्रजी उन दोनों शिष्योंको आचार्य पद देकर समाधि पूर्वक स्वर्गा तिथि एक

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