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से वृटिश गवर्नमेंट के हाथमें जाया । मज़ाक हाथमें आपर पटने में सर्वत्र शान्ति रहो, किन्तु एक बार सन् १८५७ ६० को 'पटने में फिर युद्ध की भाग प्रज्वलित हुई थी, जो भाज सिपाही बिद्रोहके नामसे विख्यात है । यद्यिपि यह बिद्रोह भयंकर रूप धारण करके भारतके अनेक अञ्चलमें फैला; किन्तु सबका केन्द्र पटना ही था। अतरत्र इतिहास में सिपाही विद्रोहके विषय में पटने का ही विशेष उल्लेख हैं ।
भूतपूर्व राजाओं तथा धर्म एवं धर्माचार्य के अनेक स्मृतिचिन्ह पटने में थे, किन्तु आज वे सब नष्ट भ्रष्ट हो गये। जो टूटेण्डर कुछ (भग्नावशेष) बचे हैं, उनकी दशाभी बहुतही शोचनीय है । जिस किसी उपायसे अवशिष्ट प्राचीन स्मृतिकी रक्षा करना इस समय नितान्त आवश्यक तथा मनुष्यमात्रका परम मर्तव्य होना चाहिये। क्योंकि इस समय जब कि प्रत्येक जाति और समाज अपना प्राचीन गौरव प्राप्त करनेके लिये उत्सुक हो रही है, जो एक मात्र प्राचीन स्मृति बिन्होंकी रक्षा करना तथा उन्हें आदर्श आधारपर भावी उन्नति की ओर अग्रसर होना ही उपयुक्त होगा । अन्यथा पूर्ण गौरव प्राप्त करनेके लिये सारे परिश्रम और यक्ष शशकश्टङ्ग ( खरगोश के सींग ) को ढूढ़ने के लिये जङ्गल - जङ्गल घूमने के समान व्यर्थ एवं कष्टदायक होनेके
अतिरिक्त और कुछ नहीं होगा। सबसे बढ़कर जैन स्मृतियोंकी
-दशा ख़राब हो रही है। इसका प्रधान कारण पटने में जैनियोंकी
-कभी तथा धनका अभाव है। भतएव अन्य देश-देशान्तरोंके
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