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( २७ ) श्रीस्थूल भद्र
क्रमशः राजा
मन्त्री कल्पकने कारागारसे मुक्त होने पर फिर अपनी शादी कर ली थी। अतएव उसके पुत्र-पौत्रादि सन्तति बहुत हो गयीं थीं । कल्यककी मृत्युके बाद भी उसके बंशज ही नन्द वंशके राजाओंके मन्त्रि पद पर आसीन रहे । नन्दकी गद्दीपर जब आठ नन्द-राजा हो चुके तव परम प्रतापी - नवम नन्द राजा हुआ और उनका मन्त्री उसी कल्पकके वंशका शकडाल हुआ । शकडाल भी बड़ाही बुद्धिमान, धार्मिक तथा कल्पक केही समान सवगुण लंकृत था । इसके दो पुत्र हुए । बड़ेका नाभ स्थूल भद्र और छोटेका श्रीयक था । स्थूल भद्रजी विनयादि गुणयुक्त तो थे, ही किन्तु इनकी बुद्धि बड़ी स्थूल थी और श्रीयक माता-पिताका पक्त तीक्ष्ण बुद्धि तथा बहुत बड़ा चतुर था। वह बराबर अपने पिताके साथ राज सभामें जाया करता था । इसलिये बड़े होने पर उसे राजा नन्दने विश्वास पात्र और प्रीति पात्र समझकर अपने अंगरक्षकके पद पर नियुक्त किया । स्थूलभद्रजी का चित विषय वासना की ओर बिशेष झुका रहता था । अतः उसी नगर में रहने वाली एक कोश्या नामक वेश्यालेप्र म हो गया । और रात-दिन वह उसो कोश्या वेश्या के घर रहने लगे ।