Book Title: Patliputra Ka Itihas
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Shree Sangh Patna

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Page 26
________________ ( १३ ) देखा न गया, तब उसने किसी जैन साध्वीसे दीक्षा ग्रहण करली और घोर तपस्याओंके द्वारा अपना शरीर त्याग कर देवलोक में जा बसी। कुछ दिनों के बाद पुष्पवतीका जीव-देवताने अवधिज्ञानसे अपने पुत्र-पुत्रीको अकृत्यमें जुड़े देखकर मनमें विचारा, कि ये इन अकृत्योंसे घोर नरकको वेदनाओंको सहेंगे। यह विचार कर उस देवताने पुष्पचूलाको स्वप्नमें नरक तथा स्वर्गका दृश्य दिखाना शुरू किया, कि इन दृश्यों को देख वे अकृत्योंसे बचें और दुर्गतिके भागी न बनने पावे। इन स्वप्नोंको देख, पुष्पचूलाने आश्चर्यसे चकित हो, अपने स्वप्नका वृतान्त अपने पतिसे कहा। एक दिन राजाने अन्निका पुत्राचार्यको अपनी सभामें बुलवाया और उनसे स्वर्ग और नरकका स्वरूप पूछा। अन्निका पुत्राचार्य्यने यथार्थ वैसाही स्वर्ग और नरककका स्वरूप वर्णन किया, जैसा कि पुष्प चूलाने स्वप्नमें देखा था। पूष्पचूलाने हाथ जोड़कर आश्चर्य से पूछा,-जैसे स्वर्गके सुख येने स्वप्नमें देखें हैं, वे किस कर्मके प्रभावसे प्राप्त हो सकते हैं ?" गुरु महाराज बोले,–“भद्रे! सुदेव सुगुरु और सुधर्मके प्रति श्रद्धा होने तथा जैन-धर्मकी दीक्षा ग्रहण करनेसे स्वर्गापवर्ग सुख मिलते हैं।" इस बातको सुनकर पुष्पचूलाको संसारसे वैराग्य हो गया अतएव हाथ जोड़कर वह गुरु महाराजसे बोली, "भगवन् ! मै अपने पतिसे पूछकर आपके श्रीचरणों में दीक्षा ग्रहण काँगी।"

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