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राजानन्द तथा उनके मन्त्री कल्पकका विवरण |
राजा उदायीके स्वर्गारोहण करनेके बाद न तो उनके कोई सन्तान थो, न कोई निकट सम्बन्धी ही था, जो उनका उत्तराधि-कारी बनाया जाता; अतएव राज्य कायम रखनेके लिये पाँच दिव्य राजकुलमें फिराये । पंच दिव्य इन्हें कहते हैं: - पद हस्ती 'प्रधान अश्व, जलकुम्भ, छत्र और नामर । (उस समयकी यह प्रभा थी, कि जब कभी ऐसी सन्देह युक्त टेढी समस्या उपस्थित होनी तब पाँच दिव्य छोड़े जाते और वे दिव्य यस्तुएँ जिसे स्वीकार करतीं, उसीको यह कार्य - भार सौंपा जाता था । इसी नियमके •अनुसार पांच दिव्य फिराये गये थे । ) ज्योंही वे नगर में फिर रहे थे, त्योंही वे सामनेसे पालकी में बैठा हुआ एक मनुष्य आता दिखाई दिया । उसे देखकर पद हस्तीने उसके मस्तककोजलपूर्णकुम्भ से अभिषेक किया और सूँड़से उठाकर उसे अपने मस्तकपर बैठा लिया । और दिव्योंने भी अपना-अपना कार्य दिखलाकर उसे स्वीकार किया। जैन शास्त्र के अनुसार यह भाग्यवानू पुरुष वेश्याकी कुक्षिसे जन्मा हुआ नापितका पुत्र था और और इसका नाम नन्द था । उसने एक दिन स्वप्नमें पाटलिपुत्र नगर को अपनी आँखों से (वेष्ठित ) लिपटा हुआ देखा । नींद खुलने पर वह स्वप्नोंपाध्याके पास गया और स्वप्नके विषयमें पूछा ।