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( २४ )
कल्पक
प्रधान मन्त्रीका पद ग्रहण करनेकी उससे प्रार्थना की। • बड़ा सन्तोषी तथा निर्लोभी था । अतः उसने राजाकी प्रार्थना सुनकर यह उत्तर दिया, कि महाराज ! मैं अपने निर्वाह मात्र के. सिवा अधिक परिग्रह रखना मनसे भी नहीं चाहता । अतएव मै अमात्य पदवी ग्रहण नहीं कर सकता । इस प्रकार राजा नन्दकी ( अवज्ञा ) नाफरमानी करके वह अपने घर चला गया। कल्पकका इस प्रकारका उत्तर सुन, राजा नन्दका चित्त क्रोध से भर गया; किन्तु कल्पकको प्रधान मन्त्री बनानेकी लालसा उसके मनसे दूर जिससे न हुई । इसके लिये वह नाना प्रकारके प्रपञ्च रचने लगा, वह इस पदको स्वीकार कर ले । दैवात् एक दिन कल्पक नन्दके पञ्चमें फँस गया। और क्रोध के आवेशमें एक धोवीकी हत्या कर डाली पीछे राजदण्डके भयसे स्वयं ही राजसभामें जाकर उपस्थित हुआ । उस समय सभा के सदस्य भी प्रायउपस्थित न थे । इस प्रकार बिना बुलाये कल्पक राजसभा में आया देख, राजा नन्द बहुत प्रसन्न हुए और शिष्टाचार के बाद फिर उसे प्रधान मन्त्रीका पद ग्रहण करनेका आग्रह करने लगे । कल्पक बड़ा दक्ष और अवसरका जानकार था । अतएव उसने उसी वक्त राजाका कहा मान लिया तथा प्रधान मन्त्रीकी मुद्रा धारण कर राजा नन्दके बराबर बैठ गया । राजाने कल्पकका बड़ा आदर किया और उस दिनसे उसको गुरुके समान सकने लगा । राजाके मनमें बहुत दिनोंसे कई दातोंकी शंकायें थीं
न शंकाओं को निवारण करनेवाला अब तक कोई पण्डित उसे