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उपाध्याय उस उत्तन स्वप्नका वृत्तान्त सुन बड़ी प्रीति पूर्वक नन्दको अपनी लड़की व्याह दी और उसको स्त्रत्राभरणों से अलं-कृत करके पालकी में बैठाकर, नगर- यात्रा करानेके लिये निकाला था, कि दियोंसे मुलाक़ात हो गयी । ( किन्तु अन्यान्य शास्त्रोंके मतसे नन्द शुद्ध क्षत्रिय वंशका राजा था । ) पञ्च-रत्न दिव्योंके ..स्वीकार कर लेनेपर मन्त्रियों तथा नगर वासी महापुरुषोंने मिल कर सानन्द 'नन्द' को महोत्सव पूर्वक राज्याभिषेक किया । भगवान् महावीर स्वामीके निर्वाणसे ६० वर्ष बाद राजा उदायीकी राजधानीका मालिक यह पहला नन्द हुआ ।
उसी नगर में कपिल नामका एक ब्राह्मण रहता था, उसके "एक बालक पैदा हुआ । नाम संस्कारके दिन कपिलने अपने पुत्रका नाम कल्पक रखा। जब वह बालक विद्याभ्यास करने के -योग्य हुआ, तब कपिलने उसे विद्याभ्यास कराना शुरू किया । 'प्रज्ञावान् होनेसे कल्पक थोड़ेही समयमें शास्त्रज्ञ तथा दक्ष हो गया कलाक बचपन से ही जितेन्द्रिय और नेकनियत था । जतएव सर्वसाधारण मनुष्यों की दृष्टिमें वह प्रामाणिक गिना जाता था। कुछ दिन बाद माता-पिता के स्वर्गवास होनेपर कल्पक सर्व प्रकारले स्वतन्त्र हो गया । उस समय पाटलिपुत्र में कल्प के समान विद्वान् गुणवान और दक्ष दूसरा कोई न था । इसलिये वह समस्त नगर वासियोंका पूज्य था । एक दिन राजा नन्दने कल्पककी बड़ी प्रशंसा सुनी । अतएव राजाने पण्डित - और बुद्धिमान समझकर कल्पकको राज सभा में बुलाया तथा