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लगे, कोई आचार्य महाराज और राजाका गाढ़ धर्म-प्रम, पाररूपरिक प्रीति और विश्वासका स्मरण करके अभ्रुधारा बरसाने लगे। थोड़ी देरको चारों ओर निस्तब्धता (चिन्ता) सी छा गयी। पीछे मन्त्री- सामन्तोंने उस पापात्माको पकड़नेके लिये चारों तरफ घुड़सवार भेजे, परन्तु उसका कहीं भी पता न लगा । शोक विह्वल मन्त्रीवर्ग राजा और आचार्य महाराजकी (और्धदेहिक क्रिया) अग्निसंस्कार करनेके बाद धर्म-पूर्वक शासन चलाने लगे । राजा उदायीको मारकर वह दुष्ट शीघ्रही उज्जयिनी नगरीमें चला गया और उज्जैनाधिपतिसे उदायीके मरनेका सब हाल कह सुनाया यह सुनकर अवन्तीपतिने दयाकी दृष्टिसे उसकी ओर देखकर कहा, “ अरे दुष्ट ! जब तू इतने दिनोंतक दीक्षा ग्रहण करके रात-दिन समता प्रधान साधुओंके पास रहकर और हमेशा धर्मोपदेश सुनकर भी शान्त न हुआ, तथा ऐसा दुष्कर्म करनेसे पीछे न हटा, तब तू मेरा क्या भला करेगा ? जा, मुँह काला का के मेरे राज्यसे निकल जा ।" इस प्रकार कह उज्जैनाधिप-तिने तिरस्कार पूर्वक उसे अपने राज्यसे निकाल दिया ।
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