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( १७ ) जाये । नौकरोंने राजाको आज्ञाके अनुसार जमोन नापकर उसमें ऐसा मनोहर नगर बसाया, जो अपनी सौन्दर्य-सम्पत्तियोंसे -स्वर्गको भी मात कर रहा था। नगरका मध्य भाग देवधिमान को तिरस्कृत करनेवाले देव-मन्दिरों, इन्द्रकी सभाको लजित करने. वाले राजमन्दिरों और अन्य भाग पुण्यशालाओं, दानशलाओं, पाठशालाओं और औषधालयोंसे अलंत एवं विभूषित था। इस अनुपम विशाल नगरका नाम विशाल पाटलि-वृक्षके आश्रयमें होनेके कारण “पाटलि-पुत्र" रखा गया । राजाने एक शुभ मुहूर्तमें अपनो प्रजाके साथ उस नगरमें प्रवेश किया। और स्तिवियोगको भूलकर सुख पूर्वक राज्य करने लगा। राजा बड़ा हा देवगुरुभक्त, प्रजापालक तथा प्रतापी था। उसके सामने अन्य राजन्यवर्ग अस्त प्राय हो गये। राजा उदायोके प्रचण्ड शासनसे दूसरे छोटे-छोटे राजाओंकी नाकमें दम आ गया था, इसलिये सब लोग राजा उदायोसे द्वेष रखने लगे। एक दिन उदायी किसी अक्षम्य अपराधपर एक खण्डिये सजाका राज्य छोन लिया। और उसे अपने राज्यले निकाल दिया। वह खण्डिया राजा अपने परिवार के साथ वहाँले भाग निकला। वह तथा उसका परिवार तो कालक्रम वश परलोक सिधार गये; कि तु उसका एकमात्र पुत्र बच गया, जो उन्जनमें आकर उन्नाधिपतिकी सेवा करने लगा। उस समय उजनाधिपति भी राजा उदायीके विरुद्ध था। यह बात उस राजपुत्रको मालूम हो गी। मौका पाकर उसने उजनाधिपतिसे कहा, कि यदि